सत्र संचालन
प्रशिक्षक इस सत्र की भूमिका को पिछले सत्र से ही उठाते हुए कहेगा कि हम इस बात को जान चुके हैं कि मूल्यों का लेना-देना मनुष्यों और मनुष्यों के समूहों से होता है, इसलिए लोगों के बीच रिश्ते इसमें कितनी अहमियत रखते हैं। जब हम संवैधानिक मूल्यों की बात करते हैं, तो सबसे पहले इस बात को समझना जरूरी होगा कि मूल्य चाहे कैसे भी हों उन्हें हमें सबसे पहले अपने जीवन में खोजने और पहचानने की जरूरत होती है। इसके लिए हमें पलट कर अपनी जिंदगी को थोड़ा साफ नजर से देखना होगा और अपने व्यक्तित्व और अनुभवों की उन तहों तक जाना होगा जहां से मूल्यों की पैदाइश होती है।
यह सत्र इसी उद्देश्य से है। इस सत्र में हम एक जैसी तीन गतिविधियां एक के बाद एक करेंगे। ये सभी गतिविधियां व्यक्तिगत होंगी, सामूहिक नहीं।
गतिविधि 1
सवाल: सात साल की उम्र तक आपका बचपन कहां गुजरा? उस समय आपके आसपास कौन लोग मौजूद थे? उनके साथ आपके संबंध कैसे थे? इस दौरान किन लोगों ने आपके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ा? यह प्रभाव किन कारणों से पड़ा रहा होगा?
प्रशिक्षक इस सवाल को बोर्ड पर लिखेगा। फिर सबसे कहेगा कि उनके पास आधे घंटे का समय है। हर कोई इस सवाल को अपनी अभ्यास पुस्तिका में उतार ले और अपनी सुविधा के हिसाब से जाकर सोचे और जवाब लिखे। सभी नियत समय पर हॉल में लौट आएं और एक-एक कर के सबके समक्ष प्रस्तुति दें।
सवाल पर विचार करने और लिखने के लिए प्रशिक्षक अपनी जरूरत के हिसाब से समय तय कर सकता है, जरूरी नहीं कि वह आधा घंटा ही हो।
नियत समय के बाद हॉल में वापस आने पर प्रतिभागी एक-एक कर के अपने जवाब सबके बीच में आकर पढ़ेंगे।
प्रशिक्षक ध्यान दें
प्रशिक्षक सबके जवाबों को नोट करता जाएगा। यह काम अपनी नोटबुक में भी प्रशिक्षक कर सकता है, लेकिन इसे यदि सबके सामने चार्ट पेपर या बोर्ड पर दर्ज किया जाए तो बेहतर हो। प्रशिक्षक को सारी प्रतिक्रियाओं को समान प्रतिक्रियाओं और असमान प्रतिक्रियाओं की दो श्रेणी में बांटना है। फिर यह देखना है कि कौन से जवाब किस संवैधानिक मूल्य की श्रेणी के भीतर आ रहे हैं।
उदाहरण के लिए, बचपन में प्रभावित करने वाले आस-पास के व्यक्तियों के संबंध में प्रतिभागियों के आने वाले जवाब कुछ ऐसे हो सकते हैं-
- सख्त पिता
- सौतेले अभिभावक (मां या पिता)
- गांव के लोग
- वह लोग जिन्होंने यौन शोषण किया
- स्नेही दादा-दादी या नाना-नानी
- जातिगत भेदभाव करने या पीटने वाले शिक्षक
- अनुशासन-प्रेमी पिता की याद यदि नकारात्मक संदर्भ में है, तो इससे यह आशय लगाया जाना चाहिए कि यह जवाब देने वाले को बचपन में पिता से ‘स्वतंत्रता’ की चाह थी। इसी तरह, एक भेदभावकारी या मारने वाले शिक्षक के प्रति नापसंदगी का आशय यह है कि बच्चा समानता और न्याय चाह रहा है। यही बात यौन शोषक के मामले में भी लागू होगी। प्यार करने वाले नाना-नानी या दादा-दादी की सुखद याद को इस रूप में लिया जाना चाहिए कि बच्चा उन बुजुर्गों के सामने सहज है जहां अपने को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है। गांव की याद या गांव के लोगों की सुखद याद मूल्य के स्तर पर बंधुत्व, एकता, सहकारिता आदि की ओर इशारा करती है।
प्रशिक्षक को यह विश्लेषण और वर्गीकरण लगातार करते चलना होगा।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
अपने विश्लेषण के आधार पर प्रशिक्षक को उपर्युक्त गतिविधि की डीब्रीफ्रिंग करनी है। इस गतिविधि का उद्देश्य क्या था, यह डीब्रीफिंग से स्पष्ट हो जाना चाहिए। सभी के जवाबों को बोर्ड या चार्ट पेपर पर बिंदुवार सबके सामने इकट्ठा कर के मूल्यों के संदर्भ में उनके आशय प्रतिभागियों को समझाने होंगे। जैसे, अगर किसी प्रतिभागी को बचपन के अपने सख्त पिता याद हैं, तो इसका मतलब कि स्वतंत्रता और न्याय का मूल्य उसके भीतर पहले से है। वही मूल्य उसकी पसंदगी या नापसंदगी को तय कर रहा है।
इसका मतलब है कि हम जो कुछ भी चाहते हैं या नहीं चाहते, हर चीज मूल्य संचालित है, भले हमें उसका अहसास हो या नहीं। जब हमें इस बात का सचेत अहसास हो जाता है, तो हम मूल्य आधारित सचेत जीवन जीने लग जाते हैं, बस इतना ही अंतर है।
प्रशिक्षक कहेगा कि इसी प्रक्रिया को हम उम्र के दूसरे पड़ावों पर दुहराएंगे और देखेंगे कि कैसे जब मनुष्य बड़ा होता जाता है तो उसके अनुभवों में उसके मूल्य और स्पष्ट होते जाते हैं।
गतिविधि 2
सवाल: आठ से अठारह बरस की उम्र में आप किस स्कूल/स्कूलों में पढ़े? उन स्कूल/स्कूलों की दो अच्छी बातें क्या थीं जो स्कूल जाने के लिए आकर्षित करती थीं? ऐसा क्यों था? (उसके क्या कारण थे?) स्कूल की दो ऐसी चीजें जो अच्छी नहीं लगती थीं? ऐसा क्यों था? (उसके क्या कारण थे?)
प्रशिक्षक इस सवाल को बोर्ड पर लिखेगा। फिर सबसे कहेगा कि उनके पास आधे घंटे का समय है। हर कोई इस सवाल को अपनी अभ्यास पुस्तिका में उतार ले और अपनी सुविधा के हिसाब से जाकर सोचे और जवाब लिखे। सभी नियत समय पर हॉल में लौट आएं और एक-एक कर के सबके समक्ष प्रस्तुति दें।
सवाल पर विचार करने और लिखने के लिए प्रशिक्षक अपनी जरूरत के हिसाब से समय तय कर सकता है, जरूरी नहीं कि वह आधा घंटा ही हो।
नियत समय के बाद हॉल में वापस आने पर प्रतिभागी एक-एक कर के अपने जवाब सबके बीच में आकर पढ़ेंगे।
प्रशिक्षक ध्यान दें
प्रशिक्षक सबके जवाबों को नोट करता जाएगा। यह काम अपनी नोटबुक में भी प्रशिक्षक कर सकता है, लेकिन इसे यदि सबके सामने चार्ट पेपर या बोर्ड पर दर्ज किया जाए तो बेहतर हो। प्रशिक्षक को सारी प्रतिक्रियाओं को समान प्रतिक्रियाओं और असमान प्रतिक्रियाओं की दो श्रेणी में बांटना है। फिर यह देखना है कि कौन से जवाब किस संवैधानिक मूल्य की श्रेणी के भीतर आ रहे हैं।
उदाहरण के लिए, आठ से अठारह साल के बीच पसंद और नापसंद पर प्रतिभागियों के जवाब कुछ ऐसे हो सकते हैं।
वह बातें जो अच्छी लगती थीं-
- सहृदय अध्यापक
- दोस्तों का साथ
- हॉस्टल के जीवन के प्रति आकर्षण
- सांस्कृतिक कार्यक्रम
- खेल-कूद के अवसर
वह बातें जो अच्छी नहीं लगती थीं-
- अध्यापकों द्वारा किया जाने वाला भेदभाव
- जातिसूचक नामों से पुकारा जाना
- रंग की वजह से भेद करना
- शारीरिक बनावट की वजह से मजाक बनाया जाना
- अरुचिकर पाठ्यक्रम
प्रशिक्षक को इन बिंदुओं को संवैधानिक मूल्यों के हिसाब से बांटना है। यह काम वह अपनी नोटबुक में कर सकता है और सबके सामने बोर्ड पर भी लिख सकता है। उदाहरण के लिए, दोस्तों का साथ और हॉस्टल जीवन के प्रति आकर्षण जैसी बातें बंधुत्व की ओर इशारा करती हैं, जबकि भेदभाव, जातिसूचक नाम, आदि गैर-बराबरी का संकेत करते हैं यानी जिस प्रतिभागी को ये नापसंद थे उसका स्वाभाविक रुझान बराबरी की ओर है।
प्रशिक्षक को यह विश्लेषण और वर्गीकरण लगातार करते चलना होगा।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
अपने विश्लेषण के आधार पर प्रशिक्षक को उपर्युक्त गतिविधि की पिछली गतिविधि की तरह ही डीब्रीफ्रिंग करनी है और बताना है कि प्रतिभागियों की पसंद और नापसंद दोनों किशोरावस्था में भी मूल्य से संचालित थीं, भले वे इसके प्रति सचेत रहे हों या नहीं। फिर प्रशिक्षक कहेगा कि इसी प्रक्रिया को हम उम्र के अगले पड़ाव पर दुहराएंगे और देखेंगे कि कैसे जीवन अनुभवों से मूल्य और स्पष्ट होते जाते हैं।
गतिविधि 3
सवाल: अठारह बरस के बाद की उम्र में आप किन संस्थानों में रहे? कहां काम किया? उन कार्यस्थलों की दो अच्छी बातें क्या थीं जो वहां काम करने के लिए आकर्षित करती थीं? ऐसा क्यों था? (उसके क्या कारण थे?) कार्यस्थल की दो ऐसी चीजें जो अच्छी नहीं लगती थीं? ऐसा क्यों था? (उसके क्या कारण थे?)
प्रशिक्षक इस सवाल को बोर्ड पर लिखेगा। हो सकता है कि प्रतिभागियों में कुछ ही पेशेवर काम करने वाले लोग हों, तो यह अभ्यास उन्हीं पर लागू होगा जिनके अपने कार्यस्थल हैं। किसी सामाजिक कार्यकर्ता के लिए उसका कार्यस्थल उसका संगठन माना जाएगा। किसी पत्रकार के लिए उसका कार्यस्थल उसका प्रतिष्ठान होगा जहां वह नौकरी करता है। जिस पर भी यह प्रश्न लागू होता हो, वह इस सवाल को अपनी अभ्यास पुस्तिका में उतार ले और अपनी सुविधा के हिसाब से जाकर सोचे और जवाब लिखे। सभी नियत समय पर हॉल में लौट आएं और एक-एक कर के सबके समक्ष प्रस्तुति दें।
सवाल पर विचार करने और लिखने के लिए प्रशिक्षक अपनी जरूरत के हिसाब से समय तय कर सकता है, जरूरी नहीं कि वह आधा घंटा ही हो।
नियत समय के बाद हॉल में वापस आने पर प्रतिभागी एक-एक कर के अपने जवाब सबके बीच में आकर पढ़ेंगे।
प्रशिक्षक ध्यान दें
इस गतिविधि में भी प्रशिक्षक को पहले की भांति मूल्यों के आईने में जवाबों को परखना होगा।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
डीब्रीफिंग पहले की दो गतिविधियों की तरह ही होगी।
तीनों गतिविधियों की डीब्रीफिंग संयुक्त रूप से करते हुए सत्रांत में इस बात पर बल देना है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है, वह ज्यादा सचेत ढंग से अपने जीवन अनुभवों से मूल्यों के सबक लेने लग जाता है और उसके मूल्य ठोस होते जाते हैं। इन अभ्यासों का सबक यह है कि हम जैसे-जैसे अनुभव-संपन्न होते जाते हैं, हमारे मूल्य ठोस होते जाते हैं। तो अब तक का सबक यह है कि मूल्य कहीं और से नहीं, हमारे जीवन-अनुभवों से ही पैदा होते हैं। ये मूल्य हमारे भीतर हमेशा मौजूद रहते हैं, बस हमें इनकी पहचान करनी होती है।
प्रशिक्षक को प्रतिभागियों को यह समझाना होगा कि यह सत्र इसलिए था कि हम लोग इस बात को समझें कि कैसे हमें जिंदगी में जो अनुभव हुए, वे सभी के सभी किसी न किसी संवैधानिक मूल्य से जुड़े हुए हैं। दूसरी बात, कि हम सभी लोगों के तमाम अलग-अलग अनुभव कुल चार मूल्यों के दायरे में ही निकल कर आ रहे हैं- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय।
इस अभ्यास में हमको समझ आता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में दर्ज चारों संवैधानिक मूल्य हमेशा से हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं और इन्होंने ही हमारे समाज की बुनियाद रखी है। आज के दौर में धीरे-धीरे यही समता, स्वतंत्रता, न्याय, भाईचारा, मानवीय गरिमा के मूल्य धीरे-धीरे समाज से विलुप्त हो रहे हैं और समाज का बुनियादी ढांचा गैर-बराबरी और भेदभाव पर आधारित होता रहा है। हमें इन्हीं मूल्यों को एक बार फिर न सिर्फ अपने जीवन में बल्कि अपने समुदायों में पुनर्स्थापित करने की जरूरत है।