सत्र संचालन
पिछले सत्र में रेनेसां से गदर तक के कालखंड के प्रमुख बिंदु दुहराने के बाद प्रशिक्षक प्रतिभागियों को गतिविधि के लिए गदर से स्वतंत्रता तक यानी करीब सौ साल की ऐतिहासिक झलकियों की एक सूची देगा (‘सत्र 12 की गतिविधि’ देखें)।
गतिविधि 1
इस गतिविधि के लिए प्रतिभागियों के तीन बड़े समूह बनाने हैं या फिर उन्हीं पुराने समूहों में अभ्यास कार्य दे देना है। प्रत्यक समूह को दी गई सूची के घटनाक्रम को तीन श्रेणियों में विभाजित करना है-
- राजनीतिक घटनाक्रम
- आर्थिक घटनाक्रम
- संस्थानिक घटनाक्रम
एक चार्ट पेपर पर हर समूह को तीन खाने बनाकर घटनाओं को तीन श्रेणियों में दर्ज करना है। इस अभ्यास के लिए एक घंटे का समय दिया जा सकता है।
समय पूरा होने के बाद हर समूह को अपनी प्रस्तुति देनी है और चार्ट पेपर को बोर्ड पर सबके अवलोकन के लिए टांग देना है।
प्रशिक्षक ध्यान दें
प्रशिक्षक को तीनों चार्ट पेपर में समान परिणामों और भिन्न परिणामों को अलग-अलग रंग के मार्कर से चिह्नित करना है। फिर बोर्ड पर उन घटनाओं को दर्ज कर देना है जिनके बारे में समूहों की राय अलग है।
एक-एक कर के उन घटनाओं पर समूहों के बीच चर्चा करवानी है कि क्या सोचकर उन्होंने उक्त घटना को उक्त श्रेणी में डाला। प्रत्येक समूह, श्रेणी चयन के लिए अपने-अपने तर्क देगा। इस तरह बहस खुलेगी और आगे बढ़ेगी।
कुछ ऐसी घटनाएं सामने आ सकती हैं जिन पर विवाद हो कि वे आर्थिक हैं, राजनीतिक हैं या संस्थानिक। ऐसे विवाद वाले मामलों को अलग से बोर्ड पर लिख देना है। उन पर भी चर्चा करनी है।
प्रशिक्षक के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह हर एक विवादित प्रविष्टि का अंतिम जवाब अपनी ओर से बतावे। ज्यादा जरूरी यह है कि समूह एक-दूसरे के तर्कों का सम्मान करते हुए परस्पर समझदारी से मामले को हल कर लें या अपने-अपने चयन के साथ ही कायम रहें। ऐसे मामलों में इतिहास तय करता है कि कोई घटना अपने समय में मूलत: आर्थिक थी, संस्थानिक थी या राजनीतिक। जरूरी नहीं है कि हर घटना का मूल चरित्र उसी वक्त स्पष्ट हो जाए। इतिहास के परिणामों में झांकने से ज्यादा समझ में आता है कि कौन सी घटना का असल चरित्र क्या था।
इसलिए विवादित घटनाओं पर चर्चा को विराम देने के लिए आज की तारीख में घटनाओं के दीर्घ परिणाम को जांचें और फिर उन पर अंतिम फैसला लें।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
प्रशिक्षक कुछ अहम बिंदुओं पर विस्तृत टिप्पएणी कर सकता है। उदाहरण के लिए ये घटनाएं हैं-
- बंकिम चंद्र चटर्जी का आनंद मठ
- कांग्रेस की स्थापना
- गांधी की देश वापसी
- मुस्लिम लीग की स्थापना
- हिंदू महासभा का गठन
- 1905 का बंगाल विभाजन
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
- प्रेस एक्ट
- स्थायी बंदोबस्ती
- प्रथम विश्व युद्ध
- बॉम्बे प्लान
- हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग का साथ चुनाव लड़ना
- देश विभाजन
- भारत में सत्ता हस्तांतरण
शुरुआत यहां से की जा सकती है कि अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह से सबक सीखा था। इस विद्रोह के नेताओं और हिंदू राजाओं ने मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर से नेतृत्व का आग्रह किया, जिसे बहादुरशाह जफर ने स्वीकार कर लिया। विद्रोह में हिंदू और मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष किया।
इसी एकता को तोड़ने के लिए लॉर्ड कर्जन की नियुक्ति विशेष रूप से की गई थी, जिसकी परिणति बंगाल विभाजन के रूप में हुई। अंग्रेजों द्वारा की जा रही सांप्रदायिक राजनीति के परिणामस्वरूप 1906 में मुस्लिम लीग का गठन हुआ और इसके प्रतिवाद स्वंरूप 1908 में पंजाब में हिंदू महासभा का गठन हुआ बाद में पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1915 में हिंदू सभा को अखिल भारतीय हिंदू महासभा का स्वरूप दिया। 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन हुआ। इन घटनाओं को राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा गया। ब्रिटिश शासन द्वारा चलाई जाने वाली सांप्रदायिक राजनीति भारत के भविष्य में स्थायी घाव की तरह सामने आई।
मौजूदा समय में जब भारत के ऐतिहासिक सह-अस्तित्व और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है, भारत की साझा और सहिष्णु संस्कृति के अतीत के बारे में जानना और लोगों को इससे शिक्षित कराना प्रतिभागियों की जिम्मेदारी है। अतीत को जानने से हमें भारत की साझा संस्कृति, ऐतिहासिक साक्ष्यों और तथ्यों के माध्यम से विभाजनकारी ताकतों को समझने और उनका मुकाबला करने के लिए शक्ति मिलती है।
इस प्रक्रिया में प्राचीन काल से भारतीय समाज में विद्यमान समानताओं की पहचान करना भी आवश्यक है। ऋग्वेद से शुरू होकर बुद्ध का दर्शन, अशोक के साम्राज्य का विस्तार, शकों, हूणों, मुगलों का प्रवेश और भारतीय उपमहाद्वीप के राज्यों से प्रतिरोध, मुगलों का हिंदू राजाओं को स्वीकार करना, 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, सहिष्णुता, परोपकार, करुणा, सहमति, साझा मूल्य थे। देश में पहले से मौजूद विभिन्न धर्मों के कई समान मूल्य न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की आधुनिक अवधारणाओं में भी प्रतिबिंबित होते हैं जो यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान उभरे और बाद में भारतीय संविधान की भावना बन गए।
आजादी के बाद संविधान निर्माण, संविधान सभा की बहसें और आगे के कुछ दशकों तक चली राजनीति पर हम अगले सत्र में अभ्यास करेंगे।