सत्र संचालन
पिछले सत्र के सीखे प्रमुख सबक को बिंदुवार दुहराने के बाद प्रशिक्षक प्रतिभागियों को सीधे गतिविधि के लिए रेनेसां से गदर तक यानी करीब डेढ़ सौ साल की ऐतिहासिक झलकियों की एक सूची देगा (‘सत्र 11 की गतिविधि’ देखें)।
गतिविधि 1
इस गतिविधि के लिए प्रतिभागियों के तीन बड़े समूह (आठ से दस के बीच) बनाने हैं। प्रत्येक समूह को दी गई सूची के घटनाक्रम को तीन श्रेणियों में विभाजित करना है-
- राजनीतिक घटनाक्रम
- आर्थिक घटनाक्रम
- संस्थानिक घटनाक्रम
एक चार्ट पेपर पर हर समूह को तीन खाने बनाकर घटनाओं को तीन श्रेणियों में दर्ज करना है। इस अभ्यास के लिए एक घंटे का समय दिया जा सकता है।
समय पूरा होने के बाद हर समूह को अपनी प्रस्तुति देनी है और चार्ट पेपर को बोर्ड पर सबके अवलोकन के लिए टांग देना है।
प्रशिक्षक ध्यान दें
प्रशिक्षक को तीनों चार्ट पेपर में समान परिणामों और भिन्न परिणामों को अलग-अलग रंग के मार्कर से चिह्नित करना है। फिर बोर्ड पर उन घटनाओं को दर्ज कर देना है जिनके बारे में समूहों की राय अलग है।
एक-एक कर के उन घटनाओं पर समूहों के बीच चर्चा करवानी है कि क्या सोचकर उन्होंने उक्त घटना को उक्त श्रेणी में डाला। प्रत्येक समूह, श्रेणी चयन के लिए अपने-अपने तर्क देगा। इस तरह बहस खुलेगी और आगे बढ़ेगी।
कुछ ऐसी घटनाएं सामने आ सकती हैं जिन पर विवाद हो कि वे आर्थिक हैं, राजनीतिक हैं या संस्थानिक। ऐसे विवाद वाले मामलों को अलग से बोर्ड पर लिख देना है। उन पर भी चर्चा करनी है।
प्रशिक्षक के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह हर एक विवादित प्रविष्टि का अंतिम जवाब अपनी ओर से बतावे। ज्यादा जरूरी यह है कि समूह एक-दूसरे के तर्कों का सम्मान करते हुए परस्पर समझदारी से मामले को हल कर लें या अपने-अपने चयन के साथ ही कायम रहें। ऐसे मामलों में इतिहास तय करता है कि कोई घटना अपने समय में मूलत: आर्थिक थी, संस्थानिक थी या राजनीतिक। जरूरी नहीं है कि हर घटना का मूल चरित्र उसी वक्त स्पष्ट हो जाए। इतिहास के परिणामों में झांकने से ज्यादा समझ में आता है कि कौन सी घटना का असल चरित्र क्या था।
इसलिए विवादित घटनाओं पर चर्चा को विराम देने के लिए आज की तारीख में घटनाओं के दीर्घ परिणाम को जांचें और फिर उन पर अंतिम फैसला लें।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
सभी बिंदुओं पर चर्चा करने के बाद प्रशिक्षक समूचे कालखंड की मुख्य प्रवृत्तियों पर अपनी टिप्पणी करेगा।
प्रस्तुत कालखंड (रेनेसां से गदर तक) की पृष्ठभूमि पर भी संक्षेप में प्रकाश डालना होगा।
लोकतंत्र और गणराज्य के सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए यह बताया जा सकता है कि प्लेटो के पास गणराज्य का विचार था, लेकिन उनका विचार प्रतिनिधित्व केंद्रित था। प्लेटो के गणतंत्र में महिलाओं की कोई जगह नहीं थी। रोमन सभ्यता को बहुत सभ्य माना जाता था, लेकिन यह ज्ञात है कि गुलामी से शुरू होकर रोमन सभ्यता में क्रूर विशेषताएं भी निहित थीं। अभिजात्यों के मनोरंजन के लिए गुलामों की जानलेवा लड़ाई, जानवरों से लड़ने के लिए उन्हें मजबूर किया जाना, आदि शामिल था। कुलीनों ने दिखाया कि रोमन सभ्यता में सार्वभौमिक मानवीय मूल्य मौजूद नहीं थे।
उस समय सार्वभौमिक मूल्य, जैसे समानता का विचार भारत में मौजूद था। इसके समर्थन में बुद्ध का उदाहरण दिया जा सकता है, जिन्होंने जातिवाद या जातिवादी प्रथाओं के खिलाफ शिक्षा दी। बुद्ध ने ईसा से पहले जाति-विरोधी विचारों का नेतृत्व किया था। उन्होंने तथाकथित निम्न जाति के लोगों से अपील की। वह यह संदेश भी फैला रहे थे कि मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं होता है।
यहीं से इस बात को उठाया जा सकता है कि सभी धर्म शोषणकारी और अन्यायपूर्ण मौजूदा प्रणालियों के विरोध के रूप में उभरे हैं। ईसाई धर्म यहूदी धर्म के अपमानजनक नियमों की थीसिस के रूप में उभरा और इस्लाम खानाबदोश, झगड़ालू अरब जनजातियों के बीच प्रतिरोध के तौर पर उभरा। इस्लाम ने सबसे पहला संविधान दुनिया को दिया जिसे मदीना कांस्टिट्यूशन के नाम से जाना जाता है। सिख धर्म का भी उदाहरण है जो बहुदेववाद की अवधारणा और जाति-आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ उभरा।
इस तरह हम पाते हैं कि सार्वभौमिक मूल्यों की पहली उपज धर्मों में हुई। इसीलिए धर्म आधारित लड़ाइयां दुनिया में सबसे पुरानी हैं जो आज तक जारी हैं। इस मामले में भारत हमेशा से ही विभिन्न संस्कृतियों के विलय और आत्मसात किए जाने का स्थान रहा है। इसने लोगों को प्रत्येक समूह की अच्छी प्रथाओं को अपनाने और एक शांतिपूर्ण समाज का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान किया।
रेनेसां और औद्योगिक क्रांति के बाद हुए भारत के औपनिवेशीकरण ने यहां सत्ता की गति में बदलाव किया। बाद में सांप्रदायिक विभाजन ने भारतीय समाज की समन्वयवादी विशिष्टता से छेड़छाड़ की। 1857 का गदर और उसके बाद की कहानी इसी सांप्रदायिक विभाजन की कहानी है।