1858 से 1947 तक का घटनाक्रम
1858 | : इंडिया एक्ट लागू। फलस्वरूप- शिक्षित भारतीयों और ब्रिटिश भारत के प्रशासन के बीच खाई बढ़ी। जो भारत की सत्ता पहले कम्पनी निदेशकों और बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के हाथों में थी, अब उस सत्ता के इस्तेमाल का अधिकार भारत मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया) को दे दिया गया। भारत मंत्री की कौंसिल को इंडिया कौंसिल कहा जाता था। कौंसिल भारत मंत्री को सलाह देती थी। भारत मंत्री कौंसिल की सलाह को रद्द भी कर सकता था। |
1859 | : नील उत्पादन के विरूद्ध बंगाल एवं बिहार में किसानों का विद्रोह। |
1860-61 | : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहला अकाल पड़ा। जिसमें 2 लाख लोगों की जानें गईं। |
1861 | : इंडियन कौंसिल एक्ट, कानून बनाने के उद्देश्य से गवर्नर जनरल की कौंसिल का विस्तार किया गया। इसे इम्पीरियल लेजिसलेटिव कौंसिल कहा गया। |
1863 | : कलकत्ता में मोहम्डन लिटरेरी सोसाइटी की स्थापना। |
1865 | : कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में उच्च न्यायालय स्थापित किए गए। : अधिनियम (कोडीफिकेशन) तथा पुराने कानूनों को संहिताबद्ध करने की प्रक्रियाओं के द्वारा अंग्रेजों ने कानूनों की एक नई प्रणाली स्थापित की। |
1865-66 | : उड़ीसा, बंगाल, बिहार और मद्रास में अकाल पड़ा। |
1866 | : दादाभाई नौरोजी ने लंदन में ईस्ट इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। |
1866-68 | : दरभंगा एवं चंपारन में नील की खेती के विरूद्ध किसान विद्रोह। |
1867-97 | : तिलक ने महाराष्ट्र में करबन्दी अभियान आरम्भ किया। |
1867-70 | : उत्तर प्रदेश, पंजाब और बम्बई में अकाल पड़ा, जहां 14 लाख से अधिक लोग मारे गए। : इसी दौरान जापान का शक्तिशाली रूप में उदय। |
1869 | : साल के अंत तक 4 हजार मील लम्बा रेल मार्ग बना। : कौंसिल को पूरी तरह भारत मंत्री (ब्रिटिश शासन) के अधीन कर दिया गया। |
1870 | : केन्द्रीय और प्रांतीय वित्त को अलग अलग किया गया। |
1870 | : बुद्धिजीवी वर्ग हिंदुस्तानी बुर्जुआ वर्ग के प्रतिनिधि की तरह उभरा। : धार्मिक पुनर्रूत्थानवादी संगठनों और समाज सुधारक संगठनों का उभरना। : आर्य समाज की स्थापना। : एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना। : इसी समय स्वयं स्फूर्त सामंत विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी विद्रोह देशभर में हुए। : आल इंडिया नेशनल कांफ्रेंस एक मंच के रूप में उभरा। |
1874 | : वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू। |
1875 | : आर्य समाज ने उत्तर भारत में हिंदू धर्म सुधार सभा की स्थापना की। : अलीगढ़ में मोहम्डन एंग्लो ओरिन्टल कालेज खुला। इसके साथ ही सैयद अहमद खान के सुधारवादी आंदोलन की प्रक्रिया शुरू। : पूना और अहमद नगर में लगान की ऊंची दर के विरूद्ध किसानों का जबरदस्त विद्रोह। |
1876 | : बंगाल में सुरेन्द्र नाथ और आनन्द मोहन बोस के नेतृत्व में जुलाई में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना हुई। |
1876-78 | : मद्रास, मैसूर, हैदराबाद, महाराष्ट्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब में अकाल पड़ा। |
1877 | : शाही दरबार दिल्ली में लगा। इस समय देश में अकाल पड़ा हुआ था। |
1878 | : आर्म्स एक्ट लागू। : सरकार ने नए विनियमों की घोषणा की। : इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों की अधिकतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई। : वर्नाक्यूलर एक्ट के तहत भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों की स्वतंत्रता पर सख्त प्रतिबंध। : वर्नाक्यूलर एक्ट को रद्द कर दिया गया। |
1879 | : भारत में 59 सूती कपड़ा मिलें थीं। जिसमें करीब 43 हजार लोग कार्यरत थे। : महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में अल्पजीवी सशस्त्र विद्रोह। |
1880 | : वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट वापस लिया गया। : इस साल के बाद रेलवे का निर्माण निजी उद्यमियों और राजकीय एजेंसी के जरिए हुआ। |
1881 | : मद्रास महाजन सभा की स्थापना। |
19वीं सदी (उत्तरार्द्ध) | : जस्टिस रानाडे और अन्य साथियों ने पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की। : राष्ट्रवादी समाचार पत्रों का प्रकाशन : ब्रिटिश लेखकों ने दावा किया कि ‘‘अतीत में भारतीय अपने ऊपर शासन करने योग्य नहीं थे। हिन्दू और मुसलमाल लड़ते रहते थे।’’ |
1882 | : 20 जूट मिलें थीं। जो अधिकतर बंगाल में थीं। यहां करीब 20 हजार लोग काम करते थे। |
1882-89 | : बाम्बे एसोसिएशन ऑफ टैक्सटाइल वर्कर्स गठित हुआ। : इसी बीच मजदूरों की 25 बड़ी बड़ी हड़तालें हुईं। : किसानों के आंदोलन ने जोर पकड़ा, जो लम्बे अरसे से भूमि कर कम करने की मांग कर रहे थे और परमानेंट सेटिलमेंट (स्थाई बन्दोवस्त) की मांग कर रहे थे। इस आंदोलन को हिन्दुस्तानी सेठों ने अपने हितों के स्वरूप ढ़ाला। |
1883-85 | : इंडियन एसोसिएशन ने रेंट बिल को लेकर रैयतों के हित की दृष्टि से जनप्रदर्शन कराया। |
1883 और 1889-90 | : जैसोर (बंगाल) में किसानों का विद्रोह। |
1885 | : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना। सम्पूर्ण भारत के पैमाने पर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की प्रथम संगठित अभिव्यक्ति। : बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन बनी। : इस एसोसिएशन का मुख्य काम महत्वपूर्ण प्रशासनिक और विधायी कदमों की आलोचना करना था। : अन्ततः हिन्दुस्तानी उद्योगपतियों, सेठों, सामन्ती रईसों और अंग्रेजी पूंजीपतियों/उद्योगपतियों की ‘पूंजी’ के बीच प्रतियोगिता बढ़ी। : हिन्दुस्तानी सेठों, सामंतों और साम्राज्यवादी शक्तियों में आपसी द्वन्द्व पैदा हुआ। फलस्वरूप बढ़ती हुई अंग्रेजी पूंजी का विरोध और हिन्दुस्तानी बुर्जुआ वर्ग के स्वतंत्र आर्थिक हितों का विकास। : हिन्दुस्तानी सेठों, उद्योगपतियों, नेताओं की समझ थी कि तीन तरीके से आर्थिक शोषण हो रहा है- वित्त, उद्योग और वाणिज्य। : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का शुरूआती दौर उदारवादी था। अ) जन आंदोलन से अलग रहें। ब) ब्रिटिश सत्ता की तारीफ। बहुत हुआ तो सरकार की कर नीति की आलोचना, हिन्दुस्तान पर थोपे गए युद्ध की भर्त्सना, सिविल सर्विस परीक्षाओं की नीति की आलोचना आदि तक ही थी। : लीडरशिप की अधिक प्राथमिकताएं उद्योग और वाणिज्य में रहीं। : आर्थिक शोषण को देखते हुए हिन्दुस्तानियों ने राष्ट्रीय पुनरूत्थान (नेशनल री जनरेशन) का विस्तृत कार्यक्रम विरोध स्वरूप चलाया। पर यही लीडरशिप में जिस आर्थिक न्याय और बराबरी के लिए संघर्ष चलाया वहीं यह भी कोशिश थी कि यह न्याय और बराबरी ‘वर्गों’/अमीरों और गरीबों के बीच न हो, मात्रा ‘राष्ट्र’ तक ही रहे। : मोपला विद्रोह, मालाबार में उच्च वर्ग के हिन्दुओं (नंबूदरी और नायर जमींदारों) के खिलाफ मुस्लिम बटाईदारों एवं काश्तकारों ने किया था। यह 1919 तक अलग अलग वक्त में हुआ। विद्रोह के रोष का कारण कृषि व्यवस्था ही थी। इसी तरह बंगाल में पबना में भी दंगे हुए। |
1885-92 | : लेजिसलेटिव काउन्सिलों के विस्तार और सुधार की मांग। |
1886 | : इंडियन एसोसिएशन का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ विलयन हो गया। : राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में। : मद्रास में थ्योसोफिकल सोसाइटी का मुख्यालय बनाया गया। |
1889 | : भयंकर सूखा जनित अकाल पड़ा। |
1890 | : कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रथम महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने कांग्रेस के अधिवेशन को सम्बोधित किया। : कांग्रेस में बिपिन चंद पाल, अरविन्द घोष तथा लाला लाजपत राय जैसे गरमदली नेताओं द्वारा नरमदलियों को चुनौती। |
1892 | : ब्रिटिश सरकार ने इंडियन काउन्सिल एक्ट पास किया। इम्पीरियल लेजिसलेटिव काउन्सिल और प्रांतीय काउन्सिलों के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी। : सार्वजनिक कोष पर भारतीय नियंत्रण की मांग। : सूखा जनित अकाल। : सार्वजनिक दबाव में आकर सरकार ने पुरानी व्यवस्था में संशोधन करके नया भारतीय विधान परिषद विधेयक पास किया। विधेयक ने गैर सरकारी सदस्यों की संख्या में वृद्धि की लेकिन उनमें से कुछ सदस्यों का चुनाव परोक्ष रूप में होना था। सदस्यों को बजट पर बोलने पर अधिकार तो था लेकिन उन्हें उस पर मत देने का अधिकार नहीं था। |
1893 | : पारम्परिक धार्मिक गणपति समारोह/शिवाजी समारोह का आरम्भ। |
1895 | : मराठा (अंग्रेजी) और केसरी (मराठी) समाचार पत्रों की स्थापना। : मुंडाओं का आदिवासी विद्रोह। |
1896 | : स्वदेशी अभियान के तहत सार्वजनिक रूप से पक्षपातपूर्ण कर नीति की घोषणा करते ही विरोध में विदेशी वस्त्रों को जलाया गया। : इटली की फौज की इथोपिया के हाथों हार। : रामकृष्ण मिशन की स्थापना। |
1896-97 | : सूखा पड़ा। इसके फलस्परूप 1899-1900 में देशभर में अकाल पड़ा। : इसमें 90 लाख लोगों की जानें गयीं। |
1897 | : बम्बई सरकार ने बाल गंगाधर तिलक और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया और उन पर उनके लेखों और भाषणों के द्वारा राजद्रोह फैलाने के जुर्म में मुकदमा चलाया गया। : पूना शहर प्लेग की चपेट में। : चापेकर बन्धुओं ने पूना में ब्रिटिश अफसरों (कमिश्नर रैण्ड तथा एक अन्य अफसर एवरेस्ट) की हत्या की। |
20वीं सदी के शुरूआत के समय की आम परिस्थितियां | : इस सदी में स्थिति यह थी कि एक भारतीय को उपलब्ध भोजन की मात्रा में 1911 और 1941 के बीच 30 वर्षों के दौरान 29 प्रतिशत तक की कमी। : 20वीं सदी के प्रारम्भिक दौर में ही देशी औद्योगिक सेठों ने अपनी स्थिति को मजबूत किया और उक्त निवेश की व्यवस्था के आधार पर सवाल उठाना शुरू किया। इस तरह स्वदेशी आंदोलन को मदद पहुंचाई। (अपने हित साधते हुए)। : स्वदेशी आंदोलन ने हिन्दुस्तानी पूंजीपतियों/सेठों आदि का इन क्षेत्रों में धन्धा बढ़ाया- बड़े स्तर की फैक्टरियों आदि में जैसे- अ) 1907 में टाटा आयरन स्टील मिल, 1910 में टाटा हाइड्रोइलैक्ट्रिक कम्पनी,1912 में टाटा ने काठियावाड़ में सीमेंट कम्पनी स्थापित की। ब) वाणिज्य बैंक और बीमा कम्पनियां खुलीं और निजी लागत ने जोर पकड़ा- 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, 1907 में इंडियन बैंक, 1911 में सेन्ट्रल बैंक, 1913 में बैंक ऑफ मैसूर खुला। : इन सब प्रक्रियाओं ने हिन्दुस्तानी सेठों/पूंजीपतियों में बाजार को लेकर आपस में ही द्वन्द पैदा कर दिया। : बढ़ती हुई खगोलीय पूंजीवादी व्यवस्था हिन्दुस्तानी अर्थव्यवस्था पर मुसीबत की तरह गिर पड़ी। अ) इसने बैंक संकट को पैदा कर दिया। ब) घरेलू बाजार (खासकर हथकरघा) में गिरावट आई। : युद्ध होने के कारण हिन्दुस्तानी सेठों/पूंजीपतियों को मुनाफा कमाने का अच्छा मौका मिला। : हिन्दुस्तानी मिल मालिकों के सूती कपड़े की मांग बढ़ गयी। : आर्मी, नौसेना से जुड़े व्यवसायों (इंजीनियरिंग) की शुरूआत। : मध्य 20वीं सदी के दौर में ही अमरीका और जर्मनी ने भी हिन्दुस्तानी बाजार में घुसपैठ शुरू कर दी। : पूंजीगत सम्बंधों ने पकड़ बनायी और उपभोक्ता वस्तुओं का विकास। : धार्मिक सुधार आंदोलन हुए। : सोशल कांफ्रेंस, सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी तथा ईसाई धर्म प्रचारकों (मिशनरीज) ने भी समाज सुधार कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
: समाज सुधार आंदोलन मुख्यत निम्नलिखित मुद्दों में सुधार की बात कर रहा था- अ) नारी मुक्ति और उनको समान अधिकार देना ब) जातीय रूढ़ियों को हटाना। स) छुआछूत का उन्मूलन इत्यादि। : दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों ने प्राचीनकाल/अतीत की महानता की दुहाई दी। प्राचीन भारतीय समाज को भारत के इतिहास का स्वर्ण युग बताया गया। | |
1900 भारत | : लार्ड कर्जन ने भारत मंत्री को लिखा कि ‘‘कांग्रेस धराशायी होने के लिए लडखड़ा रही है। मैं जब तक हूं तब तक मेरी एक बड़ी महत्वाकांक्षा यह है कि मैं उनके शांतिपूर्ण निधन में सहायता दूं।’’ : सांप्रदायिक फूट डालकर ब्रिटेन ने फूट डालो शासन करो की नीति को आगे बढ़ाया। : भयंकर सूखा जनित अकाल। |
1902 | : हरिद्वार के निकट गुरूकुल की स्थापना। : बंगाल में क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन का गठन। |
1903-8 | : सरकारी सर्वेक्षण, जिसका शीर्षक था ‘एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ बंगाल’, अंडर एन्ड्रयू फ्रेजर इसमें औद्योगिक असंतोष को उन पांच वर्षों की अवधि का महत्वपूर्ण लक्षण बताया गया। : 1905 में कलकत्ता में ट्रामों की हड़ताल हुई। : 16 अक्टूबर को पटसन कारखानों एवं रेलवे कार्यशालाओं में हड़ताल। शीघ्र ही पहला वास्तविक श्रमिक संघ बना। : सरकारी छापाखानों की उग्र हड़ताल के बीच 21 अक्टूबर को प्रिंटर्स यूनियन की स्थापना हुई। : जुलाई 1906 में ईस्ट इंडियन रेलवे क्लर्कों की हड़ताल के फलस्वरूप रेलवे मैन्स यूनियन की स्थापना। आसनसोल, रानीगंज और जमालपुर में सभाओं के माध्यम से कुलियों को भी इसमें सम्मिलित करने के प्रयास किए गए। : 1905 से 1908 के बीच पटसन कारखानों में प्रायः हड़तालें होती रहीं, जिनसे विभिन्न समयों में 37 में से 18 कारखानें प्रभावित हुए। : स्वदेशी आंदोलनों का सम्पर्क मुख्यरूप से क्लर्कों और अधिक से अधिक बंगाली जूट मिलों के मजदूरों तक ही था। |
: 1908 की गर्मियों के बाद श्रमिक आंदोलन में राष्ट्रवादियों की रूचि अचानक कम हुई और फिर पूर्णतः समाप्त हो गई। यह रूचि 1919 और 1922 के पहले फिर से उत्पन्न नहीं हुई। | |
1904 | : इंडियन आफीशियल सीक्रेट एक्ट (प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध)। : इंडियन यूनीवर्सिटीज एक्ट : राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के अंतर्गत समानान्तर विश्वविद्यालय बनाने की योजना थी किन्तु किसी भी कालेज को स्वयं से सम्बद्ध करने में असफल रहा। : 4 दिसम्बर को गृह सचिव ने सरकारी नोट लिखा कि ‘संयुक्त बंगाल शक्ति है, विभाजित बंगाल में भिन्न दिशाओं में खींचातानी की प्रवृत्ति होगी….उद्देश्य यह कि अपने शासन के विरोधियों के एक सुदृढ़ समूह को कमजोर बनाना है।’ |
1905 | : 20 जुलाई 1905 को लार्ड कर्जन ने बंगाल को दो भागों में विभाजित करने का आदेश जारी किया- अ) पूर्वी बंगाल और असम ब) शेष बंगाल : स्वदेशी आंदोलन में बंगाल के छात्रों की भूमिका बढ़ी तथा महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया। : प्रसिद्ध बैरिस्टर अब्दुल रसूल, लियाकत हुसैन और व्यवसायी गजनवी सहित अनेक मुसलमानों की भूमिका रही मगर आमतौर पर उच्च वर्गीय मुसलमान तटस्थ रहे। : ढाका के नबाव व अन्य लोगों को अधिकारियों ने बढ़ावा दिया। (भारत सरकार ने नबाव को 14 लाख रूपये का कर्ज दिया था)। : आंदोलन बंगाल के किसानों को प्रभावित न कर सका और न ही अपने साथ ला सका। : आंदोलन शहरों और प्रान्तों के उच्च और मध्य वर्ग तक ही सीमित रहा। : बंग भंग विरोधी आंदोलन का नेतृत्व जल्द ही बिपिन चन्द पाल और अरविन्द घोष के हाथों चला गया। : विनायक दामोदर सावरकर ने अभिनव भारत नामक क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था स्थापित की। |
1905 | : 206 सूती मिलें खुल गयीं थीं। इनमें करीब 1 लाख, 96 हजार लोग कार्यरत थे। : समाचार पत्रों द्वारा क्रांतिकारी आतंकवाद का प्रचार महाराष्ट्र में काल के प्रकाशन से शुरू। |
1906 | : मुस्लिम लीग का गठन। : कोयला खान उद्योग में करीब 1 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त था। : बरिसाल में बंगाल प्रांतीय सम्मेलन के शांति प्रिय प्रतिनिधियों पर हमला। |
1906-9 | : बंगाल की अदालतों में 550 राजनीतिक मुकदमें आए। : ढाका के नबाव और नबाव मोहसिनउल मुल्क के नेतृत्व में आल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना (दिसम्बर, 1906 में) हुई। : अनुशीलन द्वारा साप्ताहिक ‘जुगांतर’ का प्रकाशन। |
1907 | : लाला लाजपतराय और अजीत सिंह को पंजाब की नहरी बस्तियों में दंगों के बाद निर्वासित कर दिया गया। |
1908 | : अलीपुर मुकदमें में क्रांतिकारियों को फासी। इस खबर ने हिन्दुस्तान के अतिरिक्त इंग्लैण्ड में रह रहे भारतीयों को भी आक्रोशित कर दिया। |
1908 | : पंजाब में हिन्द सभा का गठन। |
1908-10 | : दमनकारी प्रेस कानून बनाया गया। : 1905 में और 1913 में किसानों ने सामूहिक रूप से जागीरदार की खेती करने से इन्कार कर दिया और पडोसी क्षेत्रों में जाने का प्रयास किया। : मेवाड़ में महत्वपूर्ण किसान आंदोलन। : किसान आंदोलन ने दो क्षेत्रों में सीधे और ठोस रूप से गांधीवाद के उदय में योगदान दिया। ये क्षेत्र थे- उत्तर पश्चिम बिहार का चम्पारन और गुजरात के खेड़ा क्षेत्र में। चम्पारन में 1860 से तिनकठिया व्यवस्था का छुटपुट विरोध होता रहा था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत यूरोपीय प्लान्टर रामनगर, बेतिया और मधुबन के जमींदारों से जमीन का पट्टे ले लेते थे और किसानों को बाध्य करते थे कि वे अपनी जमीन के कुछ भाग में नील की खेती करें। इसके लिए उन्हें मजदूरी भी नहीं दी जाती थी। जब 1900 के लगभग कृत्रिम रंगों की प्रतिस्पर्धा के कारण नील के व्यापार में मंदी आने लगी तो इन प्लान्टरों ने यह भार भी किसानों पर डालने का प्रयास किया। नील उगाने की बाध्यता से मुक्ति के बदले उन्होंने लगान वृद्धि अथवा एकमुश्त मुआवजा की मांग की। 1905 से 1908 के बीच मोतीहारी, बेतिया क्षेत्र में इसका कड़ा विरोध हुआ। : 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुए किसान विद्रोहों में 1855 का संथाल विद्रोह और 1875 का दक्कन विद्रोह सबसे महत्वपूर्ण थे। लेकिन 1914-1918 के पहले विश्व युद्ध के बाद और खास तौर से विश्वव्यापी अर्थ संकट (ग्रेट डिप्रेशन 1929-33) के अंतिम दशक के बाद से किसानों का असंतोष अभूतपूर्व तेजी के साथ बढ़ा। |
1908 | : मदनलाल ढींगरा ने इम्पीरियल इंस्टीट्यूट इंग्लैण्ड के जहांगीर हाल में वायली को गोली मार कर हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों को दी जाने वाली सजा का बदला लिया। |
1909 | : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर उदारवादियों का बोलबाला था। : कानून की परिधि में संवैधानिक आंदोलन और धीरे-धीरे व्यवस्थित रानजैतिक प्रगति। : जन मांगों को याचिकाओं, सभाओं, प्रस्तावों और भाषणों के जरिए अधिकारियों तक पहुंचाया जाए। : उदारवादियों को साथ रखने की दृष्टि से इंडियन कौंसिल एक्ट के जरिए संवैधानिक रियायतों की घोषणा की। इसे 1909 का मार्ले मिन्टो सुधार भी कहा गया, जो अत्यन्त सीमित था। 1892 के इंडियन कौंसिल एक्ट के जरिए विधान परिषदों में भारतीय प्रतिनिधि लेने के कार्यक्रम को विस्तार दिया गया। अब केंद्रीय विधान परिषद में अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों के एक अल्पमत को तथा प्रांतीय विधान परिषदों में अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों के बहुमत को शामिल किया गया। यह परिषदें केवल सलाहकार संस्थाएं थीं। इनके पास कोई ठोस अधिकार नहीं थे। कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं ने अंग्रेज सरकार के साथ अपनी एकता व्यक्त करते हुए इन सुधारों का लाभ उठाया। 1910 में नये वायसराय के आने पर कांग्रेस नेताओं ने अपनी वफादारी भरी भावनाएं व्यक्त कीं। : मार्ले मिण्टो सुधार में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल के 68 सदस्यों में से 36 ऑफिसर और पांच नामज़द गैर अफसर थे। : 27 सदस्यों में से 6 बडे जमींदारों तथा 2 ब्रिटिश पूंजीपतियों के प्रतिनिधि : सुधारों में सभी मुसलमानों को पृथक निर्वाचन क्षेत्रों में रखा गया। |
1911 | : सरकार ने बंग भंग को संशोधित करने की घोषणा की। : पश्चिमी और पूर्वी बंगाल एक करने और बिहार एवं उड़ीसा के नए प्रान्तों के निर्माण की घोषणा की। : तुर्की और इटली की लड़ाई : हिंदुस्तान में खिलाफत आंदोलन |
1913 | : अमरीका तथा कनाडा में रहने वाले भारतीय क्रांतिकारियों ने गदर पार्टी की स्थापना की। पार्टी के सदस्य किसान और सैनिक थे। लाला हरदयाल इसके प्रमुख नेताओं में से एक थे। मैक्सिको, जापान, फिलीपीन्स, मलाया, सिंगापुर, थाईलैण्ड, इण्डोचीन और पूर्व तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में पार्टी के सक्रिय सदस्य थे। : जैसा कि 19वीं सदी में हुआ था कि भारत में अनेक भागों में आदिवासी विद्रोह एक स्थाई तत्व बने रहे, जो कि दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश में हुए। 1913 में फोरेस्ट कमेटी द्वारा वन संरक्षण एवं राजस्व की दृष्टि से प्रतिबन्धों को कड़ा करने का परिणाम यह हुआ कि असहयोग आंदोलन के दौरान कुडप्पा में वन सत्याग्रह हुआ। 1910 में जगदलपुर में विद्रोह हुआ। |
1914 | : उड़ीसा की सामन्तवादी रियासत दसपल्ला में अक्टूबर में खोंड (आदिवासी) विद्रोह हुआ। इस विद्रोह का आरम्भ उत्तराधिकार विवाद से ही हुआ कि अंग्रेजों को हटा कर खोंडों का अपना राज्य होगा। : खोंड विद्रोह की अफवाह ने मुण्डों के पड़ोसी छोटा नागपुर क्षेत्र के उरावों के बीच भी विद्रोह भड़का दिया। यहां जात्रा भगत ने आंदोलन का आरम्भ किया। 1920 के पश्चात उरावों के इस आंदोलन ने गांधीवादी राष्ट्रवाद के साथ महत्वपूर्ण सम्पर्क स्थापित किए। : दक्षिणी राजस्थान में गोविन्द गुरू ने समाज सुधार का आंदोलन चलाया जिसने बांसवाड़ा, सुण्ड और मेवाड़ से लगी हुई डूंगरपुर रियासतों के भीलों में जागृति फैलाई। 1913 के अंत तक भील राज्य स्थापित करने की बात कही जाने लगी। : भारत की कुल बैंक जमा के 70 प्रतिशत से अधिक पर विदेशी बैंकों का अधिकार था। : जून में प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत। : हिन्दुस्तान में रजिस्टर्ड ज्वाइन्ट स्टाक कम्पनियां 2552 से 2789 तक हो गयीं। : युद्धकालीन दौर में किसानों और औद्योगिक सेठों के बीच खाई बढ़ रही थी। : पैसे की पूंजी का एकत्रीकरण बड़ी तेजी के साथ हुआ, पर पूंजी का पुर्नउत्पादन में सही इस्तेमाल नहीं हुआ। : प्रथम विश्व युद्ध के बाद विकास को दो रूपों में देख सकते हैं- अ) विश्व पूंजीवादी व्यवस्था में ब्रिटिश एकाधिकार में गिरावट ब) हिन्दुस्तानी बुर्जुआ वर्ग और साम्राज्यवाद में तनाव : जो 1910 में बम्बई में मजदूरों के हित के लिए एक संस्था बनी थी जिसका नाम कामगार हित वर्द्धक संस्था थी। इस संस्था का उद्देश्य मालिकों के बीच उत्पन्न विवाद हल करने के लिए सरकार के समक्ष याचिकाएं पेश करना था। 1914 से पहले मजदूर आंदोलन का विस्तार केवल यूरोपीय और आंग्ल भारतीय रेल कर्मचारियों तथा सरकारी कर्मचारियों के ऊपरी तबके तक सीमित था। |
1915 | : दो होमरूल लीग की स्थापना। : अखिल भारतीय हिन्दू महासभा स्थापित। |
1915 | : क्रांतिकारियों द्वारा 21 फरवरी को पंजाब में बगावत तय हुई। यह विद्रोह गदर पार्टी वालों ने तय किया था। गदर पार्टी के नेताओं ने सेना और किसानों के बीच क्रांतिकारी विचारों को फैलाने का काम किया। : गांधीजी भारत लौटे। |
1916 | : अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना। : दोनों धड़ों का संयुक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन : कांग्रेस और आल इंडिया मुस्लिम लीग ने मतभेद भुलाए और एक तरह की राजनीतिक मांगें रखीं। |
1917 | : सोवियत क्रांति। : मयूरभंज में संथालों ने और मणिपुर में थोडोई कुकियों ने विद्रोह किया। : अक्टूबर में बिहार में दंगे हुए। दंगों में लगभग 50 हजार की भीड़ ने शाहाबाद में 24, गया में 28 और पटना में दो गांवों में आक्रमण किया। इसका तात्कालिक कार्य गौरक्षा का मुद्दा था किन्तु अफवाह उड़ गई कि अंग्रेजों का शासन समाप्त हो चुका है। यह भी कहा गया कि उच्च जातियों के भूस्वामी जानबूझ कर दंगों को भड़का रहे थे ताकि स्थानीय नेतागीरी बनाये रखें। इन दंगों को भड़काने में सनातन धर्म सभा के गोरक्षा प्रचार एवं आर्य समाजियों के आंदोलन की भूमिका रही। : राष्ट्रीयता समर्थक मद्रास प्रेसीडेन्सी एसोसिएशन की स्थापना। यह गैर ब्राह्मणों की एसोसिएशन थी। इसने अलग प्रतिनिधित्व की मांग की। आगे चलकर 1920 के दशक में तमिलनाडु में आई वी रामास्वामी नायकर के नेतृत्व में एक जुझारू ब्राह्मणवाद विरोधी एवं जाति विरोधी आंदोलन विकसित हुआ। : सीआर रेड्डी, जो मद्रास के एक गैर ब्राह्मण राजनीतिज्ञ थे, ने ब्राह्मण विरोधी मंच पर रियासत के सर्वप्रथम राजनैतिक संगठन प्रजा मित्र मंडली की स्थापना की। यह संगठन मात्र शहरी व्यवसायिक गुट बन कर ही रह गया, जो वैयक्तिक संपर्क के बल पर ही दरबार की राजनीति प्रभावित करने का प्रयास करता था। : 20 अगस्त को भारत सचिव मोंटेग्यू ने संवैधानिक सुधारों की घोषणा की। : सत्याग्रह संबंधी पहला प्रयोग बिहार के चम्पारन जिले में नील खेती के अत्याचार के विरूद्ध हुआ। |
1918 | : सुधारों की परिणिति। 1918 की मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट और 1919 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में हुई। : अहमदाबाद के मजदूरों और मिल मालिकों के झगड़े में गांधीजी ने हस्तक्षेप किया और आमरण अनशन किया। |
1919 | : 1918 के बाद विभिन्न प्रशासनिक सेवाओं का भारतीयकरण किया गया। : रॉलेट एक्ट लागू किया गया। : फरवरी में गांधीजी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह सभा की स्थापना की। : 13 अप्रैल को लोकप्रिय नेताओं डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी पर विरोध प्रकट करने पर अमृतसर (पंजाब) के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा बर्बरतापूर्वक मासूम लोगों पर गोलियां चलाईं गईं। |
1919-22 | : नवम्बर में आल इंडिया खिलाफत कांग्रेस दिल्ली में हुई। : इस दौर में जब साम्राज्यवाद के खिलाफ अवामी रोष उफन रहा था उस वक्त हिंदुस्तानी बुर्जुआ वर्ग बना। : मजदूरों ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ हड़ताल की और वह राष्ट्रीय संघर्ष की अगली कतार में आ खडे हुए। : हिंदुस्तानी बुर्जुआ वर्ग ब्रिटिश पूंजी का हिस्सेदार होने लगा। : ब्रिटिश भी अपनी प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हिंदुस्तानियों की भागीदारी लेने लगे थे। : 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट या मोंटेग्यू डिक्लरेशन में कहा गया कि सत्ताधारियों की इच्छा है कि हिंदुस्तानियों का प्रशासन की हर शाखा में जुडाव हो और धीरे-धीरे स्वशासन संस्थाओं का विकास किया जाय, जिससे आगे चल कर ब्रिटिश साम्राज्य का अंतरिम हिस्सा बनकर यह हिंदुस्तान सरकार को चलाएं। |
1920 | : अगस्त में खिलाफत कमेटी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। : दिसम्बर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन कांग्रेस के संविधान में परिवर्तन जिसके तहत प्रांतीय कांग्रेस समितियों को भाषाई क्षेत्रों के आधार पर पुनर्गठित किया गया। कांग्रेस सदस्यता सभी पुरूष स्त्रियों के लिए खोल दी गई, जिनकी उम्र 21 वर्ष से अधिक हो। : अकाली आंदोलन का उदय। : 30 अक्टूबर को बम्बई में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना। |
1921 | : अकालियों के नेतृत्व में जनता ने महन्तों और उनकी मददगार सरकार के खिलाफ एक शक्तिशाली आंदोलन छेड़ा। : कांग्रेस सदस्यता की उम्र को घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। : जुलाई में आल इंडिया खिलाफत कमेटी ने प्रस्ताव पास कर घोषित किया कि किसी भी मुसलमान को ब्रिटिश फौज में काम नहीं करना चाहिए। : नवम्बर में ब्रिटिश राज सिंहासन के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ वेल्स के सामने भारत के दौरे के क्रम में विशाल प्रदर्शन हुए। : चेम्बर ऑफ प्रिंसेस की स्थापना (यहां राजाओं औेर ब्रिटिश हित मिलकर कार्य करते थे)। |
1921-22 | : असहयोग और खिलाफत आंदोलन । |
1922 | : अकालियों ने सरकार को एक नया सिख गुरूद्वारा एक्ट पास करने के लिए मजबूर कर दिया। 1925 में इस एक्ट में संशोधन हुआ। : दिसंबर में मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस : खिलाफत स्वराज पार्टी बनाई। : गांधीजी ने फरवरी में घोषण कि 7 दिनों में राजनैतिक बंदियों को न छोड़ा गया तो देशभर में करबंदी सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो जाएगा। : उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चौरी-चौरा गांव में 3000 किसानों के जुलूस पर गोलियां चलाई गईं। क्रुद्ध भीड़ ने थाने पर हमला किया। : 12 फरवरी को कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने गुजरात के बारदौली में प्रस्ताव पास कर उन सभी कार्यों को बंद कर दिया जिनके फलस्वरूप कानूनों को तोड़ा जा सकता था। : अलीगढ़ जामिया मिलिया इस्लामिया, बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ और गुजरात विद्यापीठ का जन्म हुआ। |
1923 | : साम्प्रदायिक दंगों का भड़कना- 1923 से 1927 के बीच कलकत्ता, ढाका, पटना, रावलपिंडी, दिल्ली, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, इलाहाबाद इत्यादि में फैला। |
1924 | : गांधीजी ने मोहम्मद अली के दिल्ली मकान में साम्प्रदायिक दंगों के खिलाफ अनशन किया। मुजफ्फर अहमद और श्रीपात अमृत डांगे गिरफ्तार हुए। उन पर कम्युनिस्ट प्रचार का अभियोग लगाया गया। : हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना। यह एक सशक्त क्रांति आयोजित करने के लिए बनी थी। |
1925 | : कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना। : देश के विभिन्न भागों मे मजदूर और किसान पार्टियों की स्थापना। मार्क्सवादी धारा का प्रचार। : गुजरात में किसानों ने भू-राजस्व बढ़ाने के सरकारी प्रयासों का विरोध किया। : बारदौली सत्याग्रह। : आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के नेतृत्व में ट्रेड यूनियन आंदोलन का विकास। : काकोरी षडयंत्र का मुकदमा। इस मुकदमें से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संस्था पर चोट करने की कोशिश की गई। : केवी हेडगेवार द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना। |
1926 | : कलकत्ता में दंगे। |
1927 | : आल इंडिया वीमेन कांग्रेस का उदय। : नवम्बर में साइमन कमीशन भारत आया और भारतीय संवैधानिक आयोग लागू। : दूसरा असहयोग आंदोलन। : युवा छात्र लीगों की स्थापना। : आल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस की स्थापना। : बम्बई के मजदूर और किसानों ने मिनीमम लैण्ड होल्डिंग एक्ट को वापस करवाया। |
1928 | : अगस्त में छात्रों का पहला अखिल बंगाल सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता नेहरू ने की। : अनेक हड़तालें हुईं। : खड्गपुर के रेलवे वर्कशाप में 2 महीने लम्बी हड़ताल चली। : साउथ इंडियन रेलवे मजदूरों की हड़ताल। : जमशेदपुर में टाटा आयरन स्टील कम्पनी की हड़ताल। : बम्बई की कपड़ा मिलों में हड़ताल। जिसमें 150000 मजदूर पांच महीने से अधिक हड़ताल पर रहे। इस हड़ताल में कम्युनिस्टों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। : हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का चंद्रशेखर आजाद ने नाम बदल कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया। : साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन में लाला लाजपतराय पर पुलिस हमले का बदला लेने के उद्देश्य से एचएसआरए द्वारा सॉंडर्स का वध। |
1929 | : 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंका। वे पब्लिक सेफ्टी बिल पास किए जाने का विरोध कर रहे थे। : नेहरू को ऐतिहासिक लाहौर कन्वेन्शन का अध्यक्ष बनाया गया। : 31 दिसम्बर को स्वतंत्रता के नवगृहित तिरंगे झण्डे को फहराया गया। : बम्बई में आम हड़ताल। |
1929-33 | : संयुक्त राज्य अमरीका में आर्थिक संकट का दौर। : 1929 के अंत में आने वाले विश्वव्यापी मंदी ने भारत को दो रूपों में प्रभावित किया- अ) कीमतों में, विशेष रूप से कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र गिरावट लाकर। ब) सम्पूर्ण निर्यात पर आधारित औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में गम्भीर संकट उत्पन्न करके। |
1930 | : 12 मार्च को गांधीजी की दांडी यात्रा। : दूसरा सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू : नमक कानून तोड़ा गया : लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन। यह भारतीय नेताओं को साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए बुलाया गया था। : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहमत अली चौधरी ने सर्वप्रथम ‘‘पाकिस्तान’’ शब्द का उल्लेख किया। : पाकिस्तान की प्रथम मांग मुस्लिम लीग ने लाहौर अधिवेशन में की। |
1931 | : मार्च में इर्विन-गांधी समझौता। : 23 मार्च को क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव ओर राजगुरू को फॉसी दी गयी। : कांग्रेस का सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित। : वामपंथियों और अनेक कांग्रेसी नेताओं ने गांधी इर्विन समझौते का विरोध किया। |
1932 | : गांधीजी ने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की। : अम्बेडकर ने आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस फेडरेशन की स्थापना की। : आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस एसोसिएशन की स्थापना अनुसूचित जाति के अन्य नेताओं ने की। |
1933 | : मई में सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया गया। 1934 मई में आंदोलन को वापिस ले लिया गया। : 1932 से 1934 के दौरान बिरला बार-बार गांधीजी और सरकार के बीच मध्यस्थता का प्रयास करते रहे। : 1932-33 में बम्बई के कपड़ा उद्योगपतियों को स्पष्ट रूप से कमजोर पड़ गए लंकाशायर की तुलना में जापानी मोटे कपड़े के थानों की प्रतिस्पर्धा की चिंता अधिक थी और इसी कारण अक्टूबर 1933 का कुख्यात ‘लीज मोदी’ समझौता हुआ था। जिसके अंतर्गत बम्बई के उद्योगपति लंकाशायर के इस वायदे के बदले कि वह अधिक मात्रा में भारतीय कपास खरीदेगा, ब्रिटिश कपड़े के आयात को वरीयता देने को सहमत हो गए थे। : 14 नवम्बर 1934 को बिरला ने नाटकीय ढंग से ठाकुरदास को चेतावनी दी ‘‘मेरे विचार से लंकाशायर के मुंह आदमी का खून लग गया है और अब वह लीज मोदी समझौते से संतुष्ट नहीं होगा।’’ : 1919-33 का दौर एक आर्थिक संकट का दौर भी कहा जा सकता है। इसमें सम्पूर्ण हिंदुस्तानी सामाजिक आर्थिक ढांचे को हिला कर रख दिया। (विश्व की पूंजीवादी व्यवस्था के ढांचागत संबंधों के कारण)। : फिक्की के अध्यक्ष ने खुलकर उद्योगपतियों को बुलाकर कहा कि जो ‘स्वराज के लिए लड़ रहे हैं उनके हाथों को मजबूत करो।’ : हिंदुस्तानी सेठों, बुर्जुआ वर्ग, जमींदारों, ने अपने अनुसार संवैधानिक और संस्थात्मक विकास किया। : राष्ट्रवादी आंदोलन में हिंदुस्तानी बुर्जुआ वर्ग ने अपनी पैठ बनाई और संगठन और आंदोलन को अपनी जरूरत के अनुसार ढाला। : फरवरी 1930 के दौरान कांग्रेस कमेटी की साबरमती की मीटिंग में सारी ताकत गांधीजी और उनके सहयोगियों को दे दी गयी कि वे प्रचार का नियंत्रण एवं अगुआई करें। ताकि असहयोग आंदोलन सुचारू रूप से चल सके। खास कर उन लोगों को साथ रख कर, जो अहिंसा में विश्वास रखते हों। यह प्रस्ताव यह ध्यान में रख कर किया गया कि वामपंथी देश में मजदूरों, किसानों ओर नौजवानों को लेकर समानान्तर सरकार चलाने की मांग कर रहा थे। |
1934 | : सरकार ने कांग्रेस पर से बंदिश हटा ली। : इसी समय ब्रिटिश ताकतें जमींदारों और हिंदुस्तानी बुर्जुआ वर्ग को खुश करने की कोशिश कर रही थी जिससे जन आंदोलन दबाया जा सके। : सरकार ने जुलाई के महीने में कम्युनिस्ट पार्टी को नाजायज़ करार कर दिया। : ब्रिटिश सरकार के दबाव से देश में नकदी फसलें उगाई गयीं। फलस्वरूप चीनी और कपड़े की मिलें स्थापित की गईं। 1934-35 में 32 चीनी की मिलें चीनी का उत्पादन कर रही थीं। : हिंदुस्तानी पूंजीपति मुनाफे और उत्पादन बढ़ाने की होड़ व एकाधिकार बनाने की होड में लगा था। इससे छोटे-छोटे उद्यागों को आघात पहुंचा। : आर्थिक संकट में बढ़ोत्तरी- अ) कामगारों की पगार में कमी ब) कच्चे माल की कीमतों में कमी स) मुक्त पूंजी का एकत्रीकरण |
1935 | : गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पास हुआ। : ब्रिटिश हिंदुस्तान में गवर्नमेंट इंडिया एक्ट लागू करके प्रतिक्रियावादी ताकतों को बढ़ावा देना चाह रही थी। जैसे काउन्सिल ऑफ स्टेट्स में 260 सीटों में से 104 प्रिंसेस के लिए थीं। फेडरल असेम्बली में 375 में से 125 प्रिंसेस के लिए थीं। यानी कुल जनसंख्या में से 24 प्रतिशत प्रिंसली राज्यों की जनसंख्या थी। : ब्रिटिश हितों को बरकरार रखने के लिए गवर्नर जनरल को खास अधिकार दिए गए जिसमें ब्रिटिश वित्तीय पूंजी के वाणिज्यिक और लागत के हितों को सुरक्षा प्रदान की गई। यानी ‘हिंदुस्तान में ब्रिटिश सरकार के वित्तीय पूंजीवादी तरीके को बचाकर रखा जाय।’ : एक्ट का संघीय भाग लागू नहीं हुआ। : अखिल भारतीय संघ की स्थापना। : प्रांतीय स्वायत्तता के आधार पर प्रान्तों के लिए सरकार की नई प्रणाली की व्यवस्था थी। : लखनऊ में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की स्थापना और छात्र आंदोलन का संगठित संघर्ष। |
1935-39 | : राष्ट्रवादी आंदोलन और कांग्रेस नई दिशा की ओर मुड़े। 1935 में साउथ इंडियन फेडरेशन ऑफ पीजेन्ट एन्ड एग्रीकल्चरल लेबर की स्थापना की गई जिसके महासचिव एनजी रंगा और संयुक्त सचिव ई एम एस नम्बूदरीपाद थे। |
1936 | : अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना। : नेहरू ने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन भाषण में समाजवाद को लक्ष्य के रूप में स्वीकार करने को कहा। : प्रगतिशील लेखक संघ की कानपुर में स्थापना। |
1937 | : भारत की कुल बैंक जमा के 70 प्रतिशत से भी अधिक पर विदेशी बैंकों का 1914 के दौरान जो अधिकार था अब उनका हिस्सा घटकर 57 प्रतिशत हो गया। : जापान ने चीन पर हमला किया और कांग्रेस ने तब प्रस्ताव दिया कि ‘चीनी जनता के साथ सहानुभूति और जापानी वस्तुओं का बहिष्कार करें। : आल इंडिया फेडरेशन ऑफ ब्रिटिश इंडिया एन्ड इंडियन स्टेट्स लाया गया। |
1939 | : मात्र 7 इंजीनियरिंग कालेज खुले थे। जिनमें 2217 विद्यार्थी अध्ययनरत थे। : ब्रिटिश आयातित वस्तुओं को साम्राज्यीय वरीयता (इम्पीरियल प्रीफरेंसेस) की प्रणाली के अन्तर्गत विशेष रियायतें दी गईं। : 15 से 21 अगस्त को हिटलर और सोवियत संघ में संधि हुई कि वह एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे। : द्वितीय विश्व युद्ध। : युद्ध के दौरान भोजन हेतु खाद्य सामग्री की मांग बढ़ी। इसका भार पूरी तरह भारत को झेलना पड़ा। इसी समय हिंदुस्तान में अकाल पड़ा। खास कर उन प्रान्तों में जो आयातित अनाज की खपत कर रहे थे। इस अकाल को बढ़ाने में युद्ध की भूमिका मुख्यत: रही। वहीं उपनिवेशीय ब्रिटिश ताकतों व हिंदुस्तानी व्यापारी व सूदखोरों की भूमिका कम न थी। : ब्रिटिश नीति थी कि हिंदुस्तान की औद्योगिक उन्नति को रोके रखें। : युद्ध के दौरान हथियारों की मांग के रहते हिंदुस्तान में लौह इस्पात उद्योग का विकास हुआ। वहीं अल्मूनियम उद्योग का भी आरम्भ हुआ। यही समय था जबकि कैमिकल उद्योग ने भी अपनी पैठ बनाई। इसी समय सीमेंट उद्योग का विकास भी इसी समय हुआ। : इस सबके चलते देशी बुर्जुआ (पूंजीपति) वर्ग ने कपास, चीनी, चाय, कोयला, सीमेंट, स्टील और इंजीनियरिंग क्षेत्रों से काफी कमाई की। : हिंदुस्तानी पूंजी उद्योगों में लगाई गई। : इंडियन ज्वाइंट स्टाक बैंक के डिपाजिट में बढ़ोतरी। : बैंक पूंजी का एकत्रीकरण और औद्योगिक पूंजी के साथ उसका मेल। |
1940 | : गांधी का व्यक्तिगत सत्याग्रह का आह्वान। : मार्च में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में अपनाए जाने वाले पाकिस्तान नारे को अंतिम रूप से अंग्रेजों का प्रोत्साहन रहा। |
1941-42 | : कांग्रेस का दक्षिणपंथी प्रभुत्व वाला हाई कमान बार-बार यही प्रयास कर रहा था कि अंग्रेजों से किसी प्रकार समझौता हो जाए। बाद में उन्होंने अनिच्छापूर्वक आंदोलन चलाने की अनुमति दी। जिसकी सबसे बडी विशेषता उनका दबा स्वर और सीमित स्वरूप था। जबकि पूरा वामपंथ युद्ध विरोधी और सरकार विरोधी कदम उठाना चाहता था। कांग्रेस वर्किंग कमेटी बार-बार स्पष्ट रूप में कहती रही कि वह युद्ध में अंग्रेजों का पूर्ण समर्थन करने को तैयार है बशर्ते वे उनकी दो मांगें स्वीकार करें। मांगें थीं, युद्ध पश्चात स्वतंत्रता देने का वादा और केंद्र में तुरन्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना। |
1942 | : क्रिप्स मिशन भारत में आया। : 8 अगस्त को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बम्बई में भारत छोड़ो प्रस्ताव रखा। : देश में आंदोलनों की लहर। : भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्टों द्वारा हिस्सा न लेने का निश्चय। : 23 जून को रास बिहारी बोस ने टोकियो में ‘‘इंडियन इंडिपेंडेन्स लीग’’ की बागडोर सम्भाली। |
1942-45 | : भारत छोड़ो आंदोलन। : 1942 में मार्च के प्रथम सप्ताह में क्रिप्स ने युद्धकालीन मंत्रिमंडल को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि ऐसा प्रारूप घोषित कर दिया जाय कि जिसमें अलहदगी के अधिकार की प्रांतीय विधायिकाओं द्वारा चुनी हुई संविधान निर्मात्री सभाओं की और प्रान्तों को इसमें सम्मिलित न होने के अधिकार की तथा रजवाड़ों को अपने प्रतिनिधि भेजने के अधिकार सहित भारत को डोमीनियन स्टेट दिए जाने की बात हो। : 1943 में कांग्रेस फॉसीवाद विरोधी रवैया अपना रही थी। (जबकि अंग्रेज स्पेन, आस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया को फासिस्टों के हाथों बेच रहे थे)। पहली मई, 14 जुलाई और 8 अगस्त को इलाहाबाद, वर्धा और बम्बई के प्रस्तावों में रूस और चीन के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई और मित्र देशों के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया था। यहां अपने ‘करो या मरो’ भाषण में गांधीजी ने कहा था कि ‘मैं रूस या चीन की हार का कारण नहीं बनना चाहता।’ : जुलाई 1945 में सुभाष बोस ने ‘‘आजाद हिंद फौज’’ एवं ‘‘इंडियन इंडिपेन्डेंस लीग’’ की बागडोर संभाली और 21 अक्टूबर को सिंगापुर में अस्थाई सरकार की स्थापना की। : 1941 में जून में सोवियत संघ पर नाजी का आक्रमण। : 1944-45 में अमरीका ने भारत द्वारा किए जाने वाले आयातों के सबसे बड़े स्रोत के रूप में ब्रिटेन का स्थान ले लिया। : 1945 में यूरोप में अप्रैल युद्ध खत्म हो जाने के बाद भारत स्वतंत्रता संघर्ष के नए चरण में शामिल। : देश व्यापी आंदोलन और हड़तालों का प्रदर्शन। : आजाद हिंद फौज के बंदियों की रिहाई हेतु कलकत्ता में प्रदर्शन। : ग्रीष्म में बिरला और टाटा के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधि मंडल ब्रिटेन और अमरीका गया और इसी वर्ष बिरला एवं एनफील्ड के बीच ‘हिंदुस्तान मोटर्स’ की स्थापना के लिए और टाटा एवं इम्पीरियल केमीकल्स के बीच समझौते हुए। साथ ही भारतीय बुर्जुआ नेता इस बात के लिए भी तैयार थे कि भारी उद्योगों, ऊर्जा, सिंचाई आदि क्षेत्रों में, जिनमें आरम्भ में बहुत कम लाभ होने की आशा थी सरकारी पूंजी निवेश किया जाय। : जनवरी 1944 में भारत के अग्रणी उद्योगपतियों ‘जिनमें टाटा, बिरला, पी- ठाकुरदास, श्रीराम और कस्तूर भाई लालभाई सम्मिलित थे’ ने बम्बई योजना की रूपरेखा बनाई। जिनमें 15 वर्षों के अंदर बुनियादी उद्योगों के तीव्र विकास के माध्यम से प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय को दुगुना करने की परिकल्पना की गई। : 1943 तक असम, सिंध, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में लीग के मंत्रिमंडल का गठन हो चुका था। : 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज की स्थापना की घोषणा की गयी। : नवम्बर में अंग्रेजों द्वारा आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकदमें चलाए गए, फलस्वरूप देशभर में भारी प्रदर्शन हुए। शीत काल में ब्रिटिश भारतीय सेना में असंतोष की लहर कदाचित इसी कारण फैली। इसकी परिणिति फरवरी 1946 में बम्बई में नौसेना की हड़ताल में हुई। |
1943 | : मुस्लिम लीग के करांची अधिवेशन में ‘‘विभाजन करो और जाओ’’ का नारा दिया। |
1945 | : सोवियत रूस (लाल सेना) की नाजी जर्मनी पर विजय। |
1946 | : कैबिनेट मिशन सत्ता हस्तांतरण हेतु भारत आया। : डाक तार कर्मचारियों की हड़ताल। रेल कर्मचारियों की हड़ताल उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, हैदराबाद, मालावार, महाराष्ट्र में जमीन के लिए और ऊंचे लगान के लिए संघर्ष। स्कूल और कालेजों में हड़ताल। : 1946-47 में पूर्वी बंगाल के नौआखाली, बिहार संयुक्त प्रांत के गढ़मुक्तेश्वर इत्यादि जगहों मे सांप्रदायिक दंगे हुए। इसी दौरान कई किसान विद्रोह भी हुए। : कांग्रेस और लीग की मिलीजुली सरकार की अव्यवहारिकता ने देश के विभाजन के बारे में लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसा सोचने वालों में जल्द ही नेहरू और पटेल भी सम्मिलित हो गए। : हिंदू महासभा ने पश्चिम बंगाल में एक अलग हिंदू प्रांत बनाये जाने की संभावना का पता लगाने के लिए एक समिति की स्थापना की। : 10 मार्च 1947 को नेहरू ने निजी बातचीत में वेवेल से कहा कि ‘‘सबसे अच्छी तो केबीनेट मिशन योजना ही थी यदि वह लागू की जा सकती, लेकिन अब एकमत्र वास्तविक विकल्प पंजाब और बंगाल का विभाजन ही है। 3 महीने बाद कांग्रेस अध्यक्ष कृपलानी ने माउन्टबेटन को सूचित किया लड़ाई करने से अच्छा हम यही समझते हैं कि हम उन्हें पाकिस्तान लेने दें, शर्त यह है कि आज पंजाब और बंगाल का न्याय पूर्ण बंटवारा होने दें। : सितम्बर 1946 में बंगाल की क्रांति किसान सभा में तिभागा सम्बंधी फ्लाउड कमीशन की सिफारिश को लागू करवाने के लिए जन संघर्ष का आह्वान किया। सिफारिश यह थी कि जोतदारों से लगान पर ली गयी जमीन पर काम करने वाले बटाईदारों को फसल का आधा या उससे भी कम हिस्सा मिलने के स्थान पर दो तिहाई हिस्सा दिया जाय। (कम्युनिस्ट कार्यकर्ता जिनमें जुझारू शहरी विद्यार्थी भी थे, गांवों में गए और उन्होने बटाईदारों को संगठित किया)। : 1946 और 1951 के बीच तेलंगाना आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे बडे कृषक छापामार युद्ध का साक्षी रहा। इसने 3 हजार गांवों को प्रभावित किया। इसकी आबादी 30 लाख थी और जो 16 लाख वर्ग मील के क्षेत्रा में फैले हुए थे। : जुलाई 1944 में अमरीका के न्यू हैम्पशायर के ब्रेटनहुड गांव में 44 देशों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ और परिणामस्वरूप विश्व बैंक व अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष का जन्म हुआ। : भारत को विश्व बैंक द्वारा कर्जा दिए जाने की शुरूआत 1948 में हुई जब भारतीय रेलों के लिए 34 मिलियन अमरीकी डालर का ऋण देना तय हुआ। : बैंक द्वारा ऋण का प्रथम दशक 1949-59 में भारत को कुल 611 मिलियन अमरीकी डालर के 20 ऋण दिए गए। : 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन की घोषणा हुई और संवैधानिक प्रस्ताव आगे बढ़ाया गया। : 24 अगस्त 1946 को अंतरिम सरकार बनी। : 1946-47 में रजवाड़ों की जनता में एक नई लहर उठी जिनमें हर जगह राजनैतिक अधिकारों की संविधान सभा में निर्वाचित प्रतिनिधित्व की मांग की जा रही थी। : उच्च वर्ग के नेतृत्व और जबरन प्रतिक्रियावादी शक्तियों के प्रतीक राजाओं को महत्व देकर तथा इनके साथ गठबंधन के आधार पर भारत में इसी समझौते को बढ़ावा देने के पीछे उद्देश्य यह था कि जनता की उभरती हुई ताकतों को रोका जा सके और ब्रिटिश हितों की रक्षा की जा सके तथा इस प्रकार भारत की स्थिति को स्थिरता प्रदान करने के साथ उसे एक सैनिक अड्डे के रूप में रखा जा सके, जो ब्रिटेन की अन्तर्राष्ट्रीय नीति के संदर्भ में भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सहयोगी बना दे। भारतीय नेताओं के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवादी अपनी बातचीत चलाने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीति में घोर प्रतिक्रियावादी, जनतंत्र विरोधी और सोवियत विरोधी रूख अपना रहे थे। |
1947 | : मार्च 1947 लार्ड माउंटबेटन वायसराय बना। : 5 मई को पटेल ने नरेशों को आश्वासन दिया कि कांग्रेस रजवाड़ों की दुश्मन नहीं है, बल्कि वह चाहती है कि रजवाड़े और उनकी प्रजा उनके अंतर्गत समृद्धि, संतोष और सुख पाएं। : 3 जून को घोषणा हुई कि भारत और पाकिस्तान स्वतंत्र हो जाएंगे। : 15 अगस्त 1947 प्रथम स्वतंत्रता दिवस। : जूनागढ़ (प्रिंसली स्टेट्स) भारतीय संघ में शामिल हुआ। : 14 अगस्त को पाकिस्तान बना : नेहरू प्रधानमंत्री और लार्ड माउंटबेटन गवर्नर जनरल बनें। |