संविधान निर्माण की संक्षिप्त प्रक्रिया
‘हम भारत के लोग’ अपने संविधान को अंगीकार किए हुए 74 वर्ष पूरे करने जा रहे हैं। 26 नवंबर 1949 को संविधान लागू कर दिया गया, शेष संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। 26 नवंबर को पहले जहां कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था वहीँ 2015 से उसे संविधान दिवस के रूप में याद किया जाने लगा है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य लोगों को संविधान, मौलिक अधिकारों, कर्त्तव्यों व संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूक करना है।
संविधान निर्माण एकाएक हो जाने वाली घटना नहीं थी यह एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम था। संविधान को शताब्दियों तक औपनिवेशिक सरकार के विभिन्न अधिनियमों, चार्टरों, कमीशनों, समकालीन वैश्विक घटनाओं और दुनिया के अनेक संविधानों के श्रेष्ठतम निचोड़ ने प्रभावित किया है।
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई, 1612 में अंग्रेजों ने व्यापार करने के लिए सूरत में पहली कोठी स्थापित कर ली थी। अंग्रेज व्यापारी भारत से मसाले, नील, बहुमूल्य धातुएं, सूती तथा रेशमी वस्त्र और सजावटी सामान नगदी में खरीद कर उसका व्यापार यूरोपीय देशों में करते थे। भारत से केवल निर्यात होने से अंग्रेज व्यापारियों को ज्यादा नगद खर्च करना पड़ता था क्योंकि आयात की ज्यादा जरूरत नहीं थी। इसलिए अंग्रेज व्यापारी चाहते थे कि भारत में राजनैतिक सत्ता पर कब्जा होने से ऐसी नीतियां बनाई जा सकेगी जिससे विदेशी सामानों का आयात अधिक से अधिक हो और निर्यात होने वाले सामानों पर से शुल्क हटाया जा सके।
1764 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो ने बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला और मुगल बादशाह शाह आलम (द्वितीय) की संयुक्त सेना को हराकर पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बांग्लादेश (संयुक्त बंगाल प्रांत) की दीवानी (भूमि कर वसूलने का अधिकार) प्राप्त कर लिया। इसी के साथ अंग्रेजी शासन के पांव भारत में जम गये। दीवानी प्राप्त होते ही अंग्रेजों ने भूमि कर तेजी से बढ़ाना शुरू किया। 1766-1767 में अंग्रेजों ने बंगाल में 8.17 लाख पौंड की लगान वसूल की थी जो 1793 में बढ़कर 34 लाख पौंड तक पहुंच गई। ब्रिटिश संसद ने 1773 में रेगुलेटिंग एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा कंपनी के कार्यों को नियमित करने के लिए एक अधिनियम (कानून) बना दिया गया।
1764 में बक्सर के युद्ध से 1857 के विद्रोह तक भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था। भारत में सेना और प्रशासन कंपनी के नियंत्रण में था। कंपनी का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को बढ़ाना और अधिक से अधिक कर संग्रह करना था। ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश सरकार को कर अदा करती थी। ब्रिटिश संसद समय-समय पर कुछ अधिनियम के माध्यमों से ईस्ट इंडिया कंपनी की निरंकुशता पर नियंत्रण कर रही थी।
1857 में हुए विद्रोह के बाद कंपनी ने जिस बर्बरता पूर्वक विद्रोह का दमन किया उससे भारतीय जनमानस में आक्रोश पनप रहा था और यह आक्रोश फिर से न शुरू हो जाए उसके लिए अगस्त 1858 में ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम 1858 पारित करके भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर भारत के शासन का नियंत्रण ब्रिटिश सम्राट को सौंप दिया। उस समय ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया थी। उनके द्वारा घोषणा की गई जिसमें- भारत में ब्रिटिश क्षेत्रों के विस्तार पर रोक लगा दी गई; भारतीय राजाओं की प्रतिष्ठा और अधिकार का सम्मान किया जाएगा; उनके अधीन क्षेत्रों पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं किया जाएगा और भारतीय लोगों के साथ जाति, धर्म, लिंग और वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
धीरे-धीरे भारतीय हितों को फिर से ब्रिटेन के हितों के अधीन कर दिया गया। 1858 अधिनियम पारित होने के 3 वर्ष बाद भारतीय परिषद अधिनियम 1861 को पारित किया गया। 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश संसद को महसूस हुआ कि भारत में शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग जरूरी है और शासन में पहली बार भारतीयों को शामिल किया गया।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई। शुरू में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अंग्रेजों के सहायक के रूप में जाना जाता था। 1915 में गांधी जी के भारत आगमन के बाद कांग्रेस में बदलाव आना शुरू हुआ और 1919 में गांधीजी के कांग्रेस का सचिव बनने के बाद यह जनमानस की संस्था बनी। नये नेतृत्व उभर कर आये पटेल, नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस आदि। कांग्रेस ने राजनैतिक संघर्ष के साथ सामाजिक संघर्ष भी शुरू किया और धीरे-धीरे इसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो गई।
भारत में शुरू हो चुके आजादी आंदोलनों का का दमन करने के लिए ब्रिटिश हुकुमत द्वारा 1919 में रोलेट एक्ट (अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम 1919) लाया गया। जिसमें सरकार के खिलाफ किसी गतिविधि में शामिल होने पर यह अधिनियम लागू होता था। इसके खिलाफ गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
1927 में ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम 1919 की समीक्षा और संवैधानिक सुधारों के लिए साइमन कमीशन का गठन किया। इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं होने के कारण साइमन कमीशन का विरोध किया गया। दिसंबर 1927 के कांग्रेस अधिवेशन में दो निर्णय किये गये- साइमन कमीशन का विरोध और भारत के संविधान का प्रारूप बनाने के लिए संयुक्त सभा का गठन। समिति ने अगस्त 1929 को अपने संविधान के प्रारूप कि रिपोर्ट ऑल पार्टीज कॉन्फ्रेंस को सौंप दी, जिसमें 22 अध्याय और 87 अनुच्छेद थे। संविधान के इस प्रारूप में मूलभूत अधिकारों- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता, आजीविका, धर्म और विचार की स्वतंत्रता, निशुल्क शिक्षा के प्रावधान किए गए थे। इस प्रारूप के 19 मौलिक अधिकारों में से 10 मौलिक अधिकार भारतीय संविधान का हिस्सा बने। तीन अधिकार नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किए गए।
19 दिसंबर 1929 को कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का नारा दिया गया और इसकी मांग की गई। 1931 कराची अधिवेशन में भी पूर्ण स्वराज्य की मांग दोहराई गई। इस अधिवेशन के संकल्प पत्र में कहा गया- संगठन बनाने, व्यवसाय, अभिव्यक्ति, लैंगिक समानता, महिला श्रमिकों को गर्भावस्था में विशेष सुविधा, बाल श्रम का खात्मा, भूमि राजस्व में कमी, मुख्य उद्योग और खनिजों पर राज्य का नियंत्रण किए जाने का प्रावधान किया जाए।
जब यह तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ेंगे तब भारत का संविधान बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। भारत की संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और 26 नवंबर 1949 को संविधान बनकर पूरा हुआ। नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद से संबंधित उपबंधों को तथा अस्थाई और संक्रमणकारी उपबंधों को तुरंत 26 नवंबर 1949 को ही लागू कर दिया गया शेष संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भारत की भावी व्यवस्था के प्रारूप तैयार करने में अंग्रेजों द्वारा समय-समय पर लाए जा रहे कानूनों के खिलाफ होने वाले संघर्षों ने काफी हद तक मदद किया। अंग्रेजों द्वारा लाये जा रहे कानूनों से भारतीय जनता के अधिकारों को अधिकाधिक संकुचित करने के साथ उनके शोषण और दमन करने के नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे थे। आजादी के संघर्ष में शामिल जनता और नेता इस शोषण, दमन और संपत्ति हरण करने की बारीकियों को भी समझ रहे थे उनके यह अनुभव संविधान निर्माण में बहुत काम आये। उनकी यह समझ व्यापक हुई कि जनता का शोषण, दमन और संपत्ति हरण करने के क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं। उनको शोषित रखने, उनको उत्पीड़ित करने, उनको उनके अधिकारों से वंचित करने के कौन-कौन से हथकंडे अपनाए जा सकते हैं?
स्वतंत्र भारत के नागरिक का शोषण, उत्पीड़न, संपत्ति हरण, दमन, भेदभाव ना हो इसकी संविधान निर्माण में पूरी पूरी व्यवस्था की गई जिसकी घोषणा संविधान की उद्देशिका में सबसे पहले की गई है।
भारत का संवैधानिक विकास
इस्ट इण्डिया कम्पनी के अंतर्गत | ब्रिटिश राज के अंतर्गत |
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 | भारत सरकार अधिनियम, 1858 |
पिट्स इंडिया एक्ट 1784 | भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 |
चार्टर अधिनियम 1813 | भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 |
चार्टर अधिनियम 1833 | भारत सरकार अधिनियम, 1919 |
चार्टर अधिनियम 1853 | भारत सरकार अधिनियम, 1935 |
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 |
भारत का संविधान बनने के पीछे एक लंबी प्रक्रिया और एक लंबा ऐतिहासिक काल है जिसकी अवधि लगभग 300 वर्ष की है। इस अवधि के बाद भारत का संविधान अस्तित्व में आया। अंग्रेजों से लंबे संघर्ष के बाद भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 लागू हुआ जिसमें पूर्ण रूप से उल्लेख कर दिया गया था कि 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान दोनों स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो जाएगी, प्रत्येक राज्य में गवर्नर जनरल होगा तथा जब तक दोनों राज्य अपने संविधान का निर्माण नहीं कर लेते हैं तब तक वहां पर भारत सरकार अधिनियम 1935 लागू रहेगा।
संविधान सभा का गठन
दुसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के आते-आते ब्रिटेन आर्थिक संकट में फस चुका था तो वहीं भारतीय स्वतंत्रता का आंदोलन अपने चरम पर था इन बदलती वैश्विक परिस्थितियों में ब्रिटेन ने 1945 में भारत सम्बन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा एक संविधान निर्माण करने वाली समिति बनाने का निर्णय लिया। भारत की स्वतंत्रता के प्रश्न का हल निकालने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक कैबिनेट मिशन को भारत भेजा। 24 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा तथा 16 मई 1946 को अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत किया। कैबिनेट मिशन के तीन उद्देश्य थे- संविधान सभा का गठन करना; भारत का विभाजन; संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन।
कैबिनेट मिशन की सिफारिश के आधार पर संविधान सभा में कुल सदस्यों की संख्या 389 निर्धारित की गई, जो निम्न प्रकार थी-
- ब्रिटिश भारत से 292 सदस्य
- चीफ कमिशनरी से 4 सदस्य
- देशी रियासतों से 93 सदस्य
मिशन की सिफारिश पर संविधान सभा के निर्माण के लिए जुलाई 1946 में वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव सम्पन्न हुए जिसमें प्रांतीय विधान मंडलों से 296 सदस्य निर्वाचित हुए इनमें कांग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 तथा अन्य पार्टियों के 7 एवं निर्दलीय प्रत्याशियों को 8 सीटें मिली।
भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद कुल सदस्यों (389) में से भारत में 299 ही रह गए। जिनमें 229 चुने हुए थे। वहीं 70 मनोनीत थे। जिनमें कुल महिला सदस्यों की संख्या 15, अनुसचित जाति के 26, अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे।
संविधान सभा की प्रथम बैठक दिल्ली में 9 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें 207 सदस्यों ने भाग लिया एवं सभा के अस्थाई अध्यक्ष के रूप में सच्चिदानंद सिन्हा को चुना गया। जेबी कृपलानी तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे जिन्होंने डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे अनुमोदित किया संविधान सभा के प्रथम अधिवक्ता डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।
संविधान सभा की दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 को हुई इसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया एवं संविधान सभा की तीसरी बैठक 13 दिसंबर 1946 को हुई जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया और इसी के साथ संविधान के निर्माण का कार्य शुरू हुआ। संविधान सभा के उपाध्यक्ष एच सी मुखर्जी थे।
संविधान के निर्माण हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया जो कि निम्न प्रकार है-
- संघ शक्ति समिति- पंडित जवाहरलाल नेहरु
- अल्पसंख्यक और मौलिक अधिकार समिति- सरदार वल्लभ भाई पटेल
- संघ संविधान समिति- जवाहर लाल नेहरू
- झंडा समिति- जेबी कृपलानी
- कार्य संचालन समिति- केएम मुंशी
- तदर्थ समिति- एस वर्धा
- प्रांतीय संविधान समिति- सरदार वल्लभ भाई पटेल
- प्रारूप समिति- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
- राष्ट्रध्वज संबंधी तदर्थ समिति- डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद
प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ जिसका अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बनाया गया, जिनका संविधान सभा में चयन पश्चिम बंगाल से हुआ था। इस समिति में 7 सदस्य थे। प्रारूप समिति के उपाध्यक्ष के एम मुंशी थे। प्रारूप समिति की पहली बैठक 30 अगस्त 1947 को हुई। संविधान के प्रारूप पर 114 दिन बहस हुई। भारत का संविधान 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन के निरंतर परिश्रम के बाद जनता के सामने आया।
संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई जिसमें संविधान सभा के कुल 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। इस दिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया संविधान सभा में कुल 12 महिलाओं ने भाग लिया लेकिन 8 महिलाओं ने ही संविधान पर हस्ताक्षर किए।
आजादी के बाद संविधान निर्माण प्रक्रिया में संविधान सभा इस बात से पूर्ण रूप से सहमत थी कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किये गए अमानवीय अत्याचार, भेदभाव, जातिवाद, शोषण, उत्पीड़न, धार्मिक दंगे, सम्पत्ति हरण, मनमाने राजस्व कर वसूली आदि ने देश की एकता, आर्थिक दशा, उनकी गरिमा और उनका आपसी विश्वास छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिनको वापस लाना संविधान सभा की सबसे महत्वपूर्ण और पहली शर्त है। संविधान सभा इस बात को भी समझ रही थी कि अंग्रेजों ने भारतीय जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करके ही उन्हें आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से दीन-हीन अवस्था में पंहुचा दिया है। संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था किये बिना देश का नागरिक अपना गरिमामय जीवन नहीं व्यतीत कर सकता है और इसकी सुरक्षा करना राज्य की जिम्मेदारी होगी। आजाद भारत को गरीबी, जतिवाद, छुआछूत, आर्थिक और लैंगिक असमानता, धार्मिक वैमनष्यता इत्यादि विरासत में मिली थी। समाज से यह उम्मीद नहीं थी कि वह स्वत: इस अमानवीय व्यवहारों को त्याग देगा। इसलिए देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की स्थापना के लिए राज्य की भूमिका को जरुरी माना गया। इसको संवैधानिक रूप देना इसलिए भी आवश्यक माना गया कि आने वाली सरकारों की कार्य प्रणाली और राजनैतिक प्रक्रिया में मौलिक आधिकारों की उपेक्षा न हो सके। संविधान सभा के लिए मौलिक अधिकार कितना महत्वपूर्ण था यह इस बात से पता चलता है कि संविधान सभा के संचालन के व्यापक नियम बनाने के बाद जिस विषय पर परामर्श समिति ने सबसे पहली रिपोर्ट पेश की वह विषय मौलिक अधिकार था।