भारत का संविधान ‘प्रस्तावना’ से प्रारंभ होता है। प्रस्तावना में संविधान के आदर्श, उद्देश्य तथा मौलिक नियम अन्तर्निहित अथवा समाहित हैं। संविधान की प्रस्तावना ने देश के भाग्य को सुनिश्चित, समुचित तथा व्यवस्थित आकार देने में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करने में प्रस्तावना की मार्गदर्शक के रूप में भूमिका महत्वपूर्ण है। जिन मूल्यों ने स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरणा दी वही मूल्य भारतीय लोकतंत्र के आधार बने तथा इन्हें भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया। संविधान की सभी धाराएं इन्हीं मूल्यों को हासिल करने के अनुरूप बनी हैं।
संविधान की प्रस्तावना राष्ट्र-दृष्टि और उद्देश्य का कथन है। यह राष्ट्रीय आदर्श को हासिल करने की प्रणाली की स्थापना करती है। इसीलिए, भारत के नागरिक के रूप में राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी भूमिका को समझने के लिए यह प्रस्तावना महत्वपूर्ण है।
इस प्रस्तावना में मूलत: चार मूल्यों का वर्णन है- स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व। विडम्बना है कि देश की आजादी का जब अमृतकाल मनाया जा रहा है उस वक्त ये चारों मूल्य समाज में सबसे निचली स्थिति में हैं। रोजमर्रा की घटनाओं में असंख्य बार हमें अन्याय, गैर-बराबरी, सामुदायिक टकराव और बंदिशें देखने को मिल रही हैं।
यह प्रशिक्षण मैनुअल इन्हीं चारों मूल्यों की समझ कायम करने और समुदाय/समाज में इनके प्रसार के तरीकों को खोजने और लागू करने पर केंद्रित है। चूंकि यह प्रशिक्षण मैनुअल दो वर्ष के प्रशिक्षण और फीडबैक के आधार पर तैयार किया गया है, इसलिए यह एक आजमाया हुआ खाका है जिसके दायरे में प्रशिक्षण का कोई भी कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है।