सत्र संचालन
प्रशिक्षक प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला की औपचारिक शुरुआत करेगा। सत्र की शुरुआत से पहले प्रशिक्षक प्रतिभागियों को कार्यशाला संबंधित व्यवस्थाओं, जैसे- खाने का समय, परिसर के नियम तथा सत्रों के समय की जानकारी देगा। इसके बाद सभी प्रतिभागियों की सहमति से परिचय सत्र होगा। परिचय तीन तरह की गतिविधियों के माध्यम से होगा।
गतिविधि 1
परिचय सत्र की प्रथम गतिविधि के अंतर्गत प्रशिक्षक प्रतिभागियों को गोल घेरा बनाकर खड़े होने को कहेगा। प्रशिक्षक, प्रतिभागियों की रुचि, क्षेत्र, वैवाहिक स्थिति, उम्र, संतान, संगठनों में भागीदारी, राजनीतिक रुझानों, आदि के संदर्भ में कुछ सवाल पूछेगा। इनसे सम्बंधित प्रतिभागियों को एक-एक कर के गोले के बीच बुला कर उन्हें पहचाना जाएगा और ताली बजा कर उनका स्वागत किया जाएगा।
प्रतिभागियों से पूछे जाने वाले सवालों के उदाहरण-
- वह साथी जो स्नातक हैं।
- वह साथी जिन्होंने स्नातक से आगे की पढ़ाई की है।
- वह साथी जो विवाहित हैं।
- वह साथी जो अविवाहित हैं।
- वह साथी जो खाने में मीठा पसंद करते हैं।
प्रशिक्षक ऐसे कुछ सवाल अपनी तरफ से जोड़ सकता है जिससे रुचियों-अरुचियों, निजी प्रवृत्तियों की पहचान शुरू में ही हो सके। यह प्रक्रिया आगे काम आएगी।
परिचय की इस प्रक्रिया से प्रतिभागियों के बीच एक स्तर की सहजता आएगी। इसका उद्देश्य उन्हें इस बात का अहसास करना है कि वे इस समूह में अकेले नहीं हैं बल्कि उनके जैसे और भी साथी वहां मौजूद हैं।
इस परिचयात्मक गतिविधि के बाद सब पहले की तरह अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाएंगे।
गतिविधि 2
सभी प्रतिभागी जब आराम से बैठ जाएं, तब परिचय सत्र की दूसरी गतिविधि के लिए प्रशिक्षक उन्हें तीन-तीन के छोटे समूहों में बंट कर अपना संक्षिप्त परिचय देने को कहेगा।
प्रशिक्षक इसका तरीका विस्तार से समझाएगा- प्रतिभागियों को सभी के बीच से अपने लिए दो ऐसे साथी चुनने हैं जिनके बारे में वे कम से कम जानते हों। अगर तीन के समूह बनाने की इस प्रक्रिया में कोई एक या दो प्रतिभागी छूट जाए, तो उन्हें मौजूदा समूहों में समायोजित किया जा सकता है या फिर दो के छूटने पर उन दोनों का एक अलग समूह बनाया जा सकता है।
अलग-अलग समूह बन जाने और साथ बैठ जाने के बाद प्रशिक्षक उन्हें कुछ दिए गए बिंदुओं पर चर्चा करने को कहेगा। इन बिंदुओं पर एक-दूसरे के बारे में परिचयात्मक चर्चा करके समूह के सदस्यों को एक-दूसरे का परिचय सबके बीच में देना है।
परिचयात्मक समूह चर्चा के निम्न बिंदु हो सकते हैं:
- 1. नाम
- 2. कहां से आए हैं?
- 3. शैक्षणिक योग्यता?
- 4. परिवार में कौन-कौन है?
- 5. अभी तक के काम का ब्यौरा?
प्रशिक्षक ऐसे कुछ बिंदु अपनी तरफ से जोड़ सकता है जिससे प्रतिभागियों को एक-दूसरे के बारे में बेहतर जानने का मौका मिले और उनके बीच सहजता कायम हो। यह प्रक्रिया आगे काम आएगी।
इस कार्य के लिए प्रतिभागियों से कहें कि हॉल अथवा हॉल के बाहर कहीं भी शान्त जगह पर बैठकर परिचय के लिए सुझाए गए बिन्दुओं के आधार पर अपने साथियों के साथ चर्चा करें। आवश्यकतानुसार प्रतिभागी चाहें तो परिचय बिन्दुओं को अपनी नोट बुक में नोट भी कर सकते हैं। प्रतिभागियों को इस कार्य को कितने समय में पूरा कर लेना है, इसकी सूचना प्रशिक्षक को अवश्य दे देनी चाहिए। इस कार्य की चर्चा के लिए प्रतिभागियों को लगभग 30-40 मिनट का समय देना चाहिए। प्रतिभागियों द्वारा अपने साथियों का परिचय प्राप्त करने के बाद सभी प्रतिभागी एक-दूसरे के बारे में बड़े समूह को बताएंगे। प्रतिभागियों को लगभग तीन घंटे का समय इस प्रक्रिया के लिए देना चाहिए। इस प्रक्रिया में इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि कोई भी प्रतिभागी अपना परिचय खुद न दे। परिचय का क्रम इस प्रकार हो सकता है जैसे ए व्यक्ति बी का परिचय दे, बी व्यक्ति सी का परिचय दे तथा सी व्यक्ति ए का परिचय दे।
गतिविधि 3
जब सभी प्रतिभागी अपने साथी का परिचय सदन में रख दें, तब परिचय सत्र की तीसरी गतिविधि के लिए प्रशिक्षक उन्हें गोल घेरे में आराम से बैठने को कहें। प्रतिभागियों के बैठ जाने के बाद उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर अपने नाम, कहां से आए हैं और आजीविका के साधनों के बारे में बताने को कहें। इससे प्रतिभागियों की आपस में जान-पहचान के लिए एक और अवसर खुलेगा।
प्रशिक्षक को सभी प्रतिभागियों को बोलने और सुनने के लिए पर्याप्त गुंजाइश बनाए रखनी चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान यह कोशिश रहनी चाहिए कि सभी प्रतिभागी एक-दूसरे का नाम-पता आदि ध्यानपूर्वक सुनें।
प्रशिक्षक डीब्रीफिंग
प्रशिक्षक इस तरह के तीन स्तरीय परिचय की उपयोगिता को मूल्यों के संदर्भ में समझाएगा। मूल्य चाहे मानवीय हों या संवैधानिक, हर मूल्य के मूल में मनुष्य होता है। हर मनुष्य के अपने कुछ मूल्य होते हैं जिनके आधार पर वह अपनी जिंदगी जीता है और दूसरे मनुष्यों के साथ संवाद करता है, रिश्ते बनाता है। अक्सर यह संभावना रहती है कि एक मनुष्य का मूल्य दूसरे के साथ टकराने लग जाए। जब दो मनुष्यों के मूल्य टकराते हैं तो समूह, समुदाय और समाज की संभावना कमजोर पड़ती है। फिर, चूंकि एक समूह, समुदाय और समाज का भी कोई मूल्य होता होगा, तो व्यक्ति और समूह के मूल्य में भी अक्सर टकराव होते हैं। इन टकरावों से बचने के लिए ही जरूरी है कि लोग एक-दूसरे को बेहतर जानें-समझें, ताकि उनके बीच न्यूनतम सहमति का एक रिश्ता कायम हो। एक लोकतांत्रिक गणराज्य में तमाम टकरावों और मतभेदों के साथ भी यह रिश्ता न्यूनतम नागरिकता के संबंध के रूप में सामने आता है। इसलिए अगर हम यह समझ पाएं कि मेरे मूल्य वहीं तक जायज हैं जहां दूसरे के मूल्यों का हनन नहीं हो रहा, तो हम कम से कम नागरिकता का संबंध दूसरों से बना पाएंगे। इससे आगे के और अंतरंग संबंध हमारे ऊपर निर्भर करते हैं, लेकिन परिचय का बुनियादी उद्देश्य यह है कि हम एक-दूसरे की रुचियों-अरुचियों, पसंद-नापसंद, व्यवहार, प्रवृत्तियों को समझ पाएं और अपने व्यवहार को उसी के हिसाब से संचालित करें ताकि रिश्तों में परस्पर सम्मान और प्रतिष्ठा कायम रहे।
परिचय की डीब्रिफिंग समाप्त हो जाने के बाद एक छोटा ब्रेक दें। ब्रेक के बाद गीत या कोई खेल गतिविधि करवाएं जिससे कि परिचय का सत्र समाप्त हो जाने के बाद प्रतिभागी अगली चर्चा के लिए व्यवस्थित रूप से तैयार हो सकें।
इसके बाद प्रतिभागियों को कार्यशाला के उद्देश्यों के बारे में बताया जाए। कार्यशाला के उद्देश्यों को चार्ट पेपर पर लिखें और प्रतिभागियों को चर्चा का मौका प्रदान करें, ताकि वे इस विषय पर अपने मन में उभरने वाले प्रश्नों पर चर्चा कर सकें। कार्यशाला के उद्देश्यों के साथ-साथ कार्य-पद्धति और विषय-वस्तु की मोटी-मोटी रूपरेखा प्रतिभागियों के समक्ष रखें। इससे प्रतिभागियों की सक्रियता बढ़ेगी और वे सहज हो पाएंगे।
यह ध्यान रहे कि प्रतिभागी जब प्रशिक्षण हॉल से बाहर निकलें तो उन्हें कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में मालूम हो और साथ ही यह भी उन्हें स्पष्ट हो कि इस पूरे कार्यक्रम में उनकी क्या भूमिका है।
यह कार्यशाला तीन चरणों की है। तीनों चरण का जोर सीखने के अलग-अलग स्तरों पर है। उद्देश्य निरूपण की प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों के समक्ष तीनों चरण के व्यापक उद्देश्यों को रखा जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान रहे कि इस बात की गुंजाइश हमेशा बनी रहे कि प्रतिभागियों को यह महसूस होता रहे कि उनकी स्वयं की सीखने की जरूरत ही कार्यशाला के उद्देश्य हैं। इसी प्रकार हमेशा यह ध्यान रखें कि इस पूरे सत्र की चर्चा में प्रत्येक प्रतिभागी को यह महसूस हो कि प्रशिक्षण कार्यशाला में उनकी अपनी अहमियत है और सीखने की विषय-वस्तु उनकी अपनी है तथा उनके अपने जीवन अनुभव से जुड़ी है। इसका समूचा सरोकार संवैधानिक मूल्यों के आत्मसातीकरण की प्रक्रिया से जुड़ा है।
कार्यशाला के उद्देश्य:
- संवैधानिक मूल्यों पर समझ का निर्माण करना
- प्रतिभागियों द्वारा संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करना
- संवैधानिक मूल्यों को समुदाय के स्तर पर मजबूत करने की रणनीतिक नियोजन पर साझा समझ विकसित करना
उद्देश्य स्पष्ट करने के बाद प्रशिक्षक अगले सत्र पर बात रखते हुए कहें कि अगले अभ्यास में हम सब अपने जीवन में पीछे झांककर यह देखने-समझने की कोशिश करेंगे कि आज हम जो हैं, वह कैसे हैं। आखिर एक मनुष्य के रूप में हमारी प्रवृत्तियां, हमारा आचार-व्यवहार, पसंद-नापसंद आदि कैसे विकसित हुए हैं और उनका हमारे जीवन-मूल्यों को गढ़ने में क्या योगदान रहा है।
इसके बाद कुछ व्यवस्था संबंधी- रहने, खाने, पानी आदि पर बातें स्पष्ट कर दी जाएं। रात के सांस्कृतिक कार्यक्रम पर भी निर्णय कर लिया जाएं। इसके बाद कुछ आचरणगत बातें- लोगों की भावनाओं का सम्मान, परिसर को ठीक-ठाक रहने देने, खाने पीने का समय, कार्यशाला की समय-सारिणी आदि पर प्रतिभागियों के साथ निर्णय लेकर इस सत्र को समाप्त किया जाए।
यदि प्रतिभागियों की राय बन रही हो तो पहले दिन की कार्यवाही यहीं समाप्त कर दें और सभी लोगों को प्रशिक्षण हॉल के बाहर के क्रियाकलापों, बातचीत तथा विचार-विमर्श का मौका उपलब्ध कराएं। इससे आपसी रिश्तों में सहजता तथा निकटता आएगी।