स्वतंत्रता समानता न्याय और बंधुत्व लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतान्त्रिक समाज का निर्माण उपरोक्त मूल्यों को केंद्र में रख कर ही किया गया। दुनिया के देशों से निरंकुश राजतन्त्र का खात्मा इन्ही मूल्यों को स्थापित करने के लिए किया गया। भारत में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ चले लबे संघर्ष में इन्ही मूल्यों के आधार पर समाज निर्माण की प्रेरणा थी। आजादी के बाद संविधान में इन्ही मूल्यों के आधार पर भारतीय समाज के निर्माण की कल्पना की गयी। आजादी के बाद राज्य को जिम्मेदारी दी गयी कि देश के नागरिक के लिए ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करे जिससे देश में स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व कायम किया जा सके। अंग्रेजों के जाने के बाद भारत को आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन विरासत में मिला। इस आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए जो आर्थिक नीतियां अपनाई गयी उन नीतियों ने समाज में तेजी से आर्थिक असमानता को बढ़ा दिया। सरकारों की आर्थिक नीतियों ने केवल आर्थिक असमानता को ही बढ़ावा नहीं दिया बल्कि न्याय और बंधुत्व को भी बाधित किया। विकास के नाम पर देश के नागरिकों की आजीविका (जल, जंगल, जमीन) छीन कर उनके गरिमामय जीवन जीने के मौलिक अधिकार तक छीन लिया। सरकारें अपनी आर्थिक नीतियों और राजनैतिक एजेण्डे को आगे बढाने के लिए दया, ममता और करुणा जैसे संवेदनशील मानवीय मूल्यों को भी तिलांजलि दे दी है। जनवरी 2021 की भयंकर ठण्ड में मध्य प्रदेश के इंदौर में बुजुर्ग भिखारियों, अपाहिजों को कूड़ा ढोने वाले डंपर में भर कर शहर के बाहर वीराने में छोड़ दिया गया। इसमें ऐसे वृद्ध और विकलांग भी थे जो चल भी नहीं पा रहे थे। यह अमानवीय कृत्य राज्य द्वारा इंदौर को स्वच्छ और सुन्दर शहर बनाने के लिए किया गया। यह तो एक उदाहरण है ऐसी घटनाएँ राज्य द्वारा प्रतिदिन की जाती है जहाँ देश का नागरिक इंसान नहीं जानवर समझा जाता है। देश के गरीब, बेरोजगार, निराश्रित नागरिकों के आवास (झोपड़पट्टीयों) को बुलडोजर लगा कर तोड़ दिया जाता है और उन्हें खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। बहुसंख्यक सामाज द्वारा अल्पसंख्यक समाज के साथ दुर्व्यहार, उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया जाना, सरे राह घेर कर उनकी हत्या कर देना यह सब एक सामान्य घटना हो गयी। राज्य द्वारा इन अमानवीय घटनाओं के खिलाफ समाज में उच्च निति नैतिकता ले जाने के उपाय की जगह इसमें उसकी बराबर की भागीदारी है।
महात्मा गांधी आजीवन घुटने के ऊपर धोती और साधारण चप्पल पहन कर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया उनका कहना था कि हमारे देश की बहुसंख्यक जनता के पास पहनने के लिए कपड़े और चप्पल नहीं है तो हम अच्छे कपड़े और जूते कैसे पहन सकते हैं। गाँधी जी रेल के तीसरे दर्जे में यात्रा करते थे। आज हमारे देश के प्रधानमन्त्री लाखों रूपए का सूट पहनते है और हजारों करोड़ के विमान में यात्रा करते है जब कि देश के नागरिक भीख मांगते है ऐसी जगहों पर रहते है जहाँ पानी और शौचालय की सुविधा तक नहीं है। कही कोई भूख से मर रहा है तो कोई गरीबी के कारण आत्महत्या कर रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में समाज कल्याण विभाग ने एक सर्वे किया। इस सर्वे में दिल्ली में 20719 भिखारियों की पहचान की गयी जिसमें 9541 महिलायें है। इस तरह की समाज में अनगिनत घटनाएं हैं जिनका यहां उल्लेख करने से महत्वपूर्ण यह विचारणीय होगा कि कैसे इन घटनाओं को रोका जाये। इसलिए सवाल है कि-
- इस पर शक्ति लगाईं जाय की इन परिस्थियों को कैसे बदला जाय?
- इस पर विचार किया जाय कि अपने स्वयं के अन्दर संवैधानिक मूल्यों को कैसे आत्मसात किया जाय?
- कैसे परम्परागत सोच, धारणाओं और मानसिकता को बदला जा सकता है?
- कैसे रुढ़िवादी विचार, रीती-रिवाज जो लिंग, जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति के आधार पर गैर-बराबरी होती है, उन्हें बदला जा सकता है?
- कैसे हर जगह (परिवार, समुदाय गाँव, ब्लाक, जिला, राज्य, देश आदि) में बराबरी का माहौल बनाया जा सकता है?
- कैसे गैर-बराबरी की प्रक्रिया को चुनौती दी जा सकती है?
इन सब बिन्दुओं पर विचार विमर्श करके हमें व्यवस्थित कदम उठाने होगें। यह सब परिवर्तन अपने आप नहीं आयंगे। इसके लिए सभी को साझा प्रयास करने की जरुरत है। हर व्यक्ति चाहे वह गाँव में रहता हो या कस्बों, शहरों में, महिला हो या पुरुष, अनपढ़ हो या पढ़े-लिखे, हिन्दू हो या इसाई, संगठन के कार्यकर्ता हो या संस्था के वेतनभोगी कर्मचारी सभी को अपने आप से सवाल करने होंगे कि-
- क्यों समुदाय में सामाजिक गैर-बराबरी है, कोई जाति के नाम पर ऊंचा है तो कोई नीचा है?
- क्यों देश में जाती, धर्म, पहनावा, खान-पान के आधार पर लोगों पर नियंत्रण करने की कोशिशे हो रही हैं?
- क्यों देश में आर्थिक असमानता हो रही है एक तरफ अमीर व्यक्ति और अमीर हो रहे है तो गरीब और गरीब होते जा रहे है?
- क्यों सरकारें संवैधानिक संस्थाओं का राजनितिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है, जिससे इन संस्थाओं की निष्पक्षता की छवि खराब हो रही है?
एक जागरूक नागरिक के तौर पर समाज में परिवर्तन के लिए कार्य करने की जिम्मेदारी हम सभी को लेनी होगी। अपने स्वयं, अपने परिवार, अपने समुदाय में बराबरी, न्याय, बंधुत्व, स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को स्थापित करने की पहल करनी होगी। हमें स्वयं अपनी सोच को बदलना होगा तथा दूसरों के बारे में अपनी राय को भी बदलना होगा तभी हम एक सकारात्मक बदलाव समाज में ला सकते है।
जब हम समुदाय में इन मूल्यों पर कार्य करने के लिए जाय तो एक बात का ध्यान रखे कि पहचान के आधार पर बने समूहों के इतर भी हमें अपने समूहों का निर्माण कर इन प्रक्रियाओं का संचालन करना चाहिए।
समानता का यह मुद्दा लोगों की धारणाओं, मानसिकता और विचारों से जुड़ा है। इसे समाज के बीच सेवा का कार्य करके या नीति बनवा कर हल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए लोगों में बराबरी के मूल्य, भावनाएं और एक दूसरे के प्रति सम्मान/समानता लाने के लिए प्रयास किये जाने जरुरी है।
इसके लिए हमें दो स्तर पर पहल करनी होगी। पहली, विकास योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए समुदाय के बीच गोलबंदी जिसमें विकास के दृष्टिकोण से स्थिति का विश्लेषण करते हुए वैचारिक परिवर्तन लाने होंगे।
दूसरी तरफ, पूरे समाज के साथ काम करके उनकी मानसिकता, धारणाओं को बदल कर समानता, बंधुत्व, न्यायपूर्ण समाज बनाने के प्रयास करने होंगे।
समाज को इस ओर अग्रसर करने के लिए तत्कालीन परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए उसे समाज के सामने लेकर आना और नए मूल्य समाज में स्थापित करने की दिशा में सतत प्रयास करने होगे। इन प्रयासों के जरिए समाज में परिवर्तन का माहौल बनाया जा सकता है। इन प्रयासों में हमारी क्या भूमिका हो सकती है-
- गैर रुढ़िवादी व्यवहारों को काम में लेने के अवसर प्रदान करना।
- भेदभाव एवं अपमानित करने वाली भाषा को चुनौती देना।
- हिंसा, अन्याय, असमानता जैसे मुद्दों पर युवा वर्ग से चर्चा करना।
- परिवार एवं समुदाय में समानता, बंधुत्व एवं न्यायपूर्ण व्यवहार हो, इस दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाले साहित्य को बढ़ावा देना।
- परिवार में रुढ़िवादी सोच को चुनौती देना।
- सरकार के गैर संवैधानिक कृत्यों पर सवाल उठाना।
संवैधानिक मूल्यों को समाज में ले जाने के लिए सचेत रूप से पहलकदमी की आवश्यकता है। जिसके माध्यम से हम लोग सामाजिक बदलाव को आगे बढ़ा सकते हैं। इसके लिए कई तरीको से संवैधानिक मूल्यों के लिए अभियान चलाएं जा सकते हैं। गांवों में जब कोई भी अभियान चलाते हैं तब हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम उन स्थानों का उपयोग करें जहां लोग एक साथ आते हैं। ऐसे स्थानों जैसे कि सार्वजनिक स्थल, हाट (जहां बाजार लगता है), मेले, आंगनबाड़ी, सामुदायिक केंद्र आदि जगहों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
अभियानों में विभिन्न लोक संचार के माध्यमों जैसे कि लोकगीत, कथा-कहानियां, कठपुतली कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, नौटंकी आदि का उपयोग किया जाए। कुछ स्थानीय लोगों को इस कला में नए विषय के साथ तैयार करके सांस्कृतिक जत्थे के रूप में भी सतत रूप से सामाजिक बदलाव की दिशा में काम करने को पारंगत किया जा सकता है। यह कुछ तरीके है जिनके माध्यम से हम लोग सामाजिक बदलाव को आगे बढ़ा सकते हैं-
1. समता सद्भावना संवाद यात्रा
उद्देश्य : निश्चित समय में एक समूह बनाकर निश्चित उद्देश्य के साथ एक क्षेत्र के लोगों के बीच संबंधित मुद्दों, विषय-वस्तु पर जागरूकता बनाना और परिवर्तन के लिए आह्वान करना।
प्रक्रिया :
- इन यात्राओं को किसी भी स्तर पर आयोजित किया जा सकता है। गांवों में संविधान, संवैधानिक मूल्यों पर चर्चा के लिए यह एक अच्छा तरीका है।
- जिस क्षेत्र में यात्रा निकालना है उस क्षेत्र में काम करने वाले तथा उस क्षेत्र को जानने वाले लोगों का एक दल इसकी तैयारी के लिए गठित करें।
- उस क्षेत्र का भौगोलिक नक्शा, उपलब्ध संसाधनों के बारे में पूरी सूचनाएं एकत्रित करें।
- यात्रा के कुल दिन कितने होंगे, कौन-कौन सहयात्री होंगे, यह तय करें।
- प्रत्येक दिन कितने किलोमीटर की यात्रा की जा सकेगी, यह तय करें।
- जिस क्षेत्र में यात्रा की जाने वाली है उस क्षेत्र की कुल दूरी और एक दिन में तय किए जाने वाले किलोमीटर के अनुसार विभिन्न उप-क्षेत्रों में बांटना।
- प्रत्येक उप-क्षेत्र के लिए एक दल बनाना जिसमें स्थानीय क्षेत्र के लोग होंगे।
- प्रत्येक उप-क्षेत्र का “यात्रा का रास्ता” तय करना, रात्रि में जिस गांव में दल रुकेगा वहां पर आम सभा, सांस्कृतिक कार्यक्रम की योजना बनाना।
- प्रत्येक दिन की योजना बनाना एवं आवश्यक संसाधनों को जुटाना।
- यात्रा से पहले क्षेत्र में सूचना देना। उस क्षेत्र के संपर्क सूत्रों- मुखिया, अध्यापक आदि को भी सूचना देना।
- यात्रा का सतत विवरण स्थानीय समाचार पत्र, पत्रिकाओं में देना।
- यात्रा एक स्थान से निश्चित दिनांक पर प्रारंभ की जाए। हर दल पूरे जोश और उमंग और आवश्यक संसाधनों के साथ यात्रा के लिए प्रस्थान करें।
- गांव-गांव में संवैधानिक मूल्यों पर नारों या पोस्टर के माध्यम से बताया जाए।
- यात्रा में सभी धर्मों के लोगों को जोड़ना जरूरी है क्योंकि इस तरह के आयोजनों के मध्यम से धर्म के प्रति बदलाव जल्दी लाया जा सकता है और सांप्रदायिकता से होने वाले दंगों को रोका जा सकता है।
- गांव में दिन या रात में आम सभा की जाए तथा इसमें सामाजिक गैर-बराबरी पर चर्चा व संवाद किया जाए। इसे बदलने के लिए उन्हें ललकारा जाए। इन आम सभाओं में मनोरंजन के जन माध्यमों का उपयोग करके गीत, ड्रामा, नुक्कड़ नाटक, कठपुतली प्रदर्शन आदि द्वारा विषय वस्तु को बताया जाए।
संदर्भ सामग्री : साधारण रूप से दीवारों पर लिखने के लिए चूना-मिट्टी, नारों की सूची, गीतों की किताबें, पोस्टर-चार्ट आदि।
2. फिल्म फेस्टिवल का आयोजन
संविधान निर्माण, समाज में मौजूद गैर-बराबरी पर कई अच्छी फिल्में बनी हैं। कुछ डॉक्यूमेंट्री वीडियो फिल्में भी इस विषय पर हैं। कई फिल्मों में इन स्थितियों में बदलाव के तरीके भी बताए गए हैं। कुछ ऐसी ही फिल्मों का चयन करके विभिन्न स्तर पर फिल्मोंत्सव का आयोजन किया जा सकता है।
उद्देश्य : इसके जरिए समाज में व्याप्त सामाजिक गैर-बराबरी के मुद्दों को विभिन्न घटनाक्रम के माध्यम से एक साथ दिखाया जा सकता है। इसके द्वारा एक साथ बहुत से लोगों तक पहुंचा जा सकता है। यह जानकारी को और आगे बढ़ाने को प्रेरित करने का एक अच्छा माध्यम है।
प्रक्रिया :
- फिल्मों का चयन विषय की स्पष्टता और प्रस्तुतीकरण तथा क्या हल या रास्ता दिखा रहे हैं इन सब के आधार पर होना चाहिए। अतः आयोजक दल स्वयं पहले इन सभी फिल्मों को देखें।
- फिल्म एक निश्चित अवधि में दिखाने के लिए तय की जाए। प्रत्येक दिन किसी एक मुद्दे पर एक फिल्म दिखाई जाए। हर फिल्म के बाद खुली चर्चा का आयोजन भी किया जाना चाहिए।
- क्षेत्रीय स्तर पर दो-तीन गांव के बीच में इस तरह तीन-चार दिन लगातार सामाजिक मुद्दों से संबंधित फिल्मों और चर्चा रखने से सामाजिक बदलाव का माहौल बनेगा।
3. विचार गोष्ठी
उद्देश्य : विशेष (व्यवसाय, जाति, लिंग, कार्य-क्षेत्र, भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर तय) समूह के साथ सतत विचार गोष्ठी के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों पर जागरूकता बढ़ाना तथा सामूहिक रूप से इस तरह की स्थितियों के खिलाफ आवाज उठाने को प्रेरित करना।
प्रक्रिया :
- यह गोष्टी किसी भी स्तर पर (गांव, शहर, स्थानीय-राष्ट्रीय) आयोजित की जा सकती है। विभिन्न लोगों के साथ संबंधित विषयों पर विचार विमर्श का यह एक उपयुक्त माध्यम है।
- आयोजनकर्ता को विषय व उद्देश्य के अनुरूप सहभागियों और विषय से संबंधित मुख्य वक्ता का चयन करना चाहिए।
- सभी को समय पर पूरी सूचना (विषय, समय, स्थान, वक्ता, कार्यक्रम आदि) पहुंचा दी जानी चाहिए।
- अभियान के संदर्भ में विचार गोष्ठी का आयोजन निश्चित समय अवधि में क्रमानुसार कई विचार गोष्ठियों का आयोजन उस अभियान के हिस्से के रूप में करना चाहिए।
- गोष्टी के लिए चयनित विषय की जानकारी विशेषज्ञ के द्वारा देने के साथ-साथ पोस्टर, चार्ट, पुस्तिकाओं, फिल्म आदि के द्वारा भी दी जा सकती है।
- गोष्टी का स्थान व समय लोगों की सुविधानुसार निश्चित किया जाना चाहिए।
- इसके लिए पूर्व तैयारी अच्छी तरह की जानी चाहिए।
4. जन सभाएं
उद्देश्य : आम जनता में संवैधानिक मूल्यों और समाज में गैर-बराबरी के मुद्दों को उठाना। सामाजिक बुराई के रूप में समझ कर इन्हें जड़ से दूर करने के प्रति दृढ़ संकल्प लेने को प्रेरित करना।
प्रक्रिया :
- ये आम सभाएं स्थानीय स्तर (ग्राम या शहर) पर आयोजित की जा सकती हैं। पूरे क्षेत्र में यदि निश्चित सप्ताह में तीन-चार दिन विभिन्न स्थानों पर जनसभाएं आयोजित की जानी चाहिए। इससे पूरे क्षेत्र में विषय से संबंधित चर्चा का माहौल बनेगा व कुछ वैचारिक हलचल नजर आने लगेगी।
- विभिन्न जन माध्यमों से इन जनसभाओं की सूचना का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।
- विषय के अनुरूप अच्छे वक्ताओं का चयन करना चाहिए, जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति स्वयं के विचारों को परखने और बदलने को प्रेरित हो सकेगा।
- बैठक व्यवस्था, माइक, बिजली आदि व्यवस्था उपयुक्त होनी चाहिए अन्यथा आयोजन का उद्देश्य ही पूर्ण नहीं हो पाएगा।
- प्रेस मीडिया का उपयोग करके पत्र-पत्रिकाओं, टीवी, अखबार आदि में इसके बारे में दिया जाना चाहिए जिससे सभी के पास इसकी जानकारी पहुंच पहुंचाई जा सके।
5. प्रदर्शनी एवं चर्चा
उद्देश्य : चित्र, पोस्टर, चार्ट, मॉडल आदि द्वारा समाज में समता की स्थिति, समाज में गैर-बराबरी, सरकारों के गैर-संवैधानिक कार्य, समाज में बराबरी कायम करने के संवैधानिक प्रावधान आदि मुद्दों के बारे में जागरूकता एवं जानकारी बढ़ाना।
प्रक्रिया :
- यह प्रदर्शनी किसी भी स्तर पर आयोजित की जा सकती है। गांव में सामाजिक बराबरी की सोच बनाने के लिए, एक साथ संबंधित विषयों को सामने लाने के लिए यह एक अच्छा माध्यम है।
- इसमें प्रदर्शनी की विषय वस्तु तय करके उसे तरह-तरह से (पोस्टर, चार्ट, फोटो, चित्र, मॉडल आदि) प्रदर्शित करने हेतु तैयार करें।
- इसमें स्क्रीन प्रिंटिंग, ड्राइंग के जानकार व ग्राफिक डिजाइनर के जानकारों के साथ मिलकर प्रदर्शनी की सामग्री विकसित कर सकते हैं।
- प्रदर्शनी की विषय वस्तु और उसको दिखाने का तरीका प्रदर्शनी में हिस्सेदार लोगों के अनुसार रखना चाहिए।
- सूचना इस तरह बनाएं कि आसानी से समझी जा सकती हो, यह छोटी, व्यवहारिक और सकारात्मक हो।
- प्रदर्शनी का स्थान लोगों की सुविधा के अनुसार निश्चित किया जाना चाहिए। स्थान ऐसा हो कि वहां एक साथ 50-100 लोग आ सकते हों।
- प्रदर्शनी के साथ-साथ चर्चाओं का आयोजन करने से इस विषय पर गहरी समझ और आगे बढ़ने के कुछ कदम भी बनाए जा सकते हैं।
6. कार्यशालाएं
उद्देश्य : विशेष (व्यवसाय, जाति, लिंग, कार्य-क्षेत्र, भौगोलिक स्थिति आदि के आधार पर तय) समूह के साथ सतत कार्यशालाओं के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों पर समझ विकसित करने तथा सामूहिक रूप से समुदाय तक मूल्यों को पहुंचाने के लिए रणनीति तैयार करना।
प्रक्रिया :
- यह कार्यशालाएं किसी भी स्तर पर (गांव, शहर, स्थानीय-राष्ट्रीय) आयोजित की जा सकती है। विभिन्न लोगों के साथ संबंधित विषयों पर साझा समझ विकसित करने का यह एक उपयुक्त माध्यम है।
- आयोजनकर्ता को विषय व उद्देश्य के अनुरूप सहभागियों और विषय से संबंधित मुख्य वक्ता का चयन करना चाहिए।
- सभी को समय पर पूरी सूचना (विषय, समय, स्थान, वक्ता, कार्यक्रम आदि) पहुंचा दी जानी चाहिए।
- कार्यशालाओं का आयोजन निश्चित समय अवधि में क्रमानुसार कई कार्यशालाओं का आयोजन उस अभियान के हिस्से के रूप में करना चाहिए।
- कार्यशाला के लिए चयनित विषय की जानकारी विशेषज्ञ के द्वारा देने के साथ-साथ पोस्टर, चार्ट, पुस्तिकाओं, फिल्म आदि के द्वारा भी दी जा सकती है।
- कार्यशाला का स्थान व समय लोगों की सुविधानुसार निश्चित किया जाना चाहिए।
- इसके लिए पूर्व तैयारी अच्छी तरह की जानी चाहिए।
7. पॉडकास्ट
उद्देश्य : पॉडकास्ट द्वारा समाज में समता की स्थिति, समाज में गैर-बराबरी, सरकारों के गैर-संवैधानिक कार्य, समाज में बराबरी कायम करने के संवैधानिक प्रावधान आदि मुद्दों के बारे में जागरूकता एवं जानकारी बढ़ाना।
प्रक्रिया :
- पॉडकास्ट का कोई नाम होना चाहिए।
- पॉडकास्ट की शुरुआत अभिवादन के साथ होनी चाहिए।
- पॉडकास्ट के शुरुआत में एक निश्चित संगीत होना चाहिए।
- चर्चा में दो से ज्यादा लोग हो।
- बातचीत अनौपचारिक हो।
- चर्चा के लिए एक फॉर्मेट हो।
- आपस में चर्चा एक कहानी जैसी लगे।
- चर्चा की अवधि छोटी होनी चाहिए।
- संगीत का इस्तेमाल इस तरह से हो की वह बातचीत में दखल भी ना दे और चलता भी रहे।
- पॉडकास्ट ऐसा होना चाहिए जो मन में भाव पैदा करे।
- जूम पर चर्चा की जानी चाहिए उसके बाद वाइस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
बच्चों और युवाओं के साथ अभियान
आज के बच्चे कल के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। वे जैसा देखेंगे, पढ़ेंगे, सुनेंगे वैसे ही विचार उनके मानस पटल पर स्थाई रूप से बन जाएंगे। वे स्वयं बड़े होकर फिर वही तो दोहराएंगे, यही तो सदियों से चलता हुआ आ रहा है। अतः यह बहुत महत्वपूर्ण होगा कि बच्चों को भी समाज का नजरिया बदलने में भागीदार बनाया जाए। इससे उनकी अपनी मानसिकता में भी परिवर्तन होगा। शिक्षण संस्थाएं इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बच्चों एवं युवाओं के साथ अभियान के आम उद्देश्य होंगे।
बच्चों को उनके मौलिक एवं बाल अधिकारों के प्रति प्रारंभ से ही सजग करना। समाज में व्याप्त भेदभाव के खिलाफ बच्चों का मन बनाना। बच्चों एवं युवाओं के साथ अभियान के निम्न तरीके हो सकते हैं-
1. स्टोरी टेलिंग/किस्सागोई
मानवीय मूल्यों, समाज में मौजूद गैर-बराबरी पर कई अच्छी कहानियां लिखी गई हैं। प्रेमचंद, यशपाल, शरदकुमार आदि की कुछ कहानियां इस विषय पर हैं। कई कहानियों में इन स्थितियों में बदलाव के तरीके भी बताए गए हैं। कुछ ऐसी ही कहानियों का चयन करके विभिन्न स्तर पर स्टोरी टेलिंग के माध्यम से बच्चों के साथ आयोजन किए जा सकते हैं।
उद्देश्य : इसके जरिए समाज में व्याप्त गैर-बराबरी के मुद्दों को विभिन्न घटनाक्रम के माध्यम से एक साथ चर्चा की जा सकती है। इसके द्वारा एक साथ बहुत से बच्चों तक पहुंचा जा सकता है। यह जानकारी को और आगे बढ़ाने को प्रेरित करने का एक अच्छा माध्यम है।
प्रक्रिया :
- कहानियों का चयन विषय की स्पष्टता और प्रस्तुतीकरण तथा क्या हल या रास्ता दिखा रहे हैं इन सब के आधार पर होना चाहिए। अतः आयोजक दल स्वयं पहले इन सभी कहानियों को पढ़ लें।
- कहानी एक निश्चित अवधि में सुनाने/सामूहिक पढ़ने के लिए तय की जाए। प्रत्येक दिन किसी एक मुद्दे पर एक कहानी सुनाई जाए। हर कहानी के बाद खुली चर्चा का आयोजन भी किया जाना चाहिए।
- क्षेत्रीय स्तर पर दो-तीन गांव के बीच में इस तरह तीन-चार दिन लगातार सामाजिक मुद्दों से संबंधित कहानियों और चर्चा रखने से सामाजिक बदलाव का माहौल बनेगा।
2. खेल प्रतियोगिता
खेल हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम अपने जीवन की शुरुआत खेल से ही करते हैं और युवा होने तक किसी न किसी माध्यम से खेल से जुड़े होते हैं। यह आपसी संवाद को मजबूत करने के सबसे बेहतर तरीकों में से एक है।
खेल का मैदान समावेशी होता है जहां धर्म और जाति, अमीरी और गरीबी खेल मैदान के बाहर रह जाते हैं खेल के मैदान में सभी अपनी पोज़िशन पर खेलने वाले खिलाड़ी होते हैं। उनका टैलेंट ही उनकी पहचान होता है।
फुटबॉल को चुनने का कारण ये है कि यह सभी वर्ग के लोग खेल सकते हैं आपको खेलने के लिए बस जज़्बा एक फुटबॉल और एक ग्राउंड चाहिए होते है। मतलब इस खेल में आर्थिक खर्च बहुत कम होते हैं।
उद्देश्य : शहर/गांव के युवाओं में टूटते संवाद को बढ़ाने और उनको उनके पसंदीदा खेल से वापस जोड़ने के लिए यह सबसे उपयुक्त प्रक्रिया है जिसमें युवा टीवी, मोबाइल से बाहर निकल कर अपने प्राकृतिक खेल से जुड़ते हैं और लोगों से जीवंत रिश्ते भी बनाते हैं।
खेल को देखने वाले और खेलने वाले दोनों टीम में बंटे होते हैं और वो धर्म, संप्रदाय और जाति से इतर किसी ऐसी टीम को जिताने की कोशिश करते हैं जिसमें खेलने वाले युवा विभिन्न धर्म और जाति से होते हैं और एक ही टीम में खेल रहे होते हैं
प्रक्रिया :
- यह एक आमंत्रण टूर्नामेंट होता है। तो आपको उन जगहों को चिन्हित करना होगा जहां साम्प्रदायिक सौहार्द की बराबरी के मूल्यों को स्थापित करने की ज़रूरत है फिर उन जगहों के खेलने वाले पुराने नए सभी खिलाड़ियों से संपर्क कर एक सामुदायिक टीम को अपने टूर्नामेंट में आमंत्रित करिये। ऐसे शहर या ग्रामीण क्षेत्रों से 6 से 10 टीम चिन्हित करिये।
- किसी भी टीम को तभी एंट्री मिलेगी जब उस टीम में एक धर्म या जाति के खिलाड़ी नही खेलेंगे बल्कि हर एक टीम में अलग-अलग धर्म और जाति के खिलाड़ी होंगे ।
- चूंकि प्रत्येक टीम में कोच सहित 15 खिलाड़ी होते हैं तो हमारे पास मौका होता है कि हम इस पूरे आयोजन के समय इन सभी को खेल के बाद कि प्रक्रियाओं में इंगेज करें।
- कोशिश करिये कि टूर्नामेंट में साप्ताहिक मैच हो और एक दिन में 2 से अधिक मैच न हो।
- मैच के बीच के खाली 6 दिनों में किसी एक टीम के खिलाड़ियों के समुदाय में जा कर बैठक करें और युवाओं से उनकी कहानियां सुने। आज के समय में समुदाय के युवाओं को सुनने वाले कम ही लोग बचे हैं।
- अपने फुटबॉल क्लब और समुदाय में सकारात्मक और समावेशी परिवर्तन के लिए उनको प्रेरित करें।
- प्रत्येक मैच में किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाएं जो युवाओं को प्रोत्साहित कर सके युवाओं से संवाद करे और उनको खेल की समावेशी प्रकृति से उनके जीवन को जोड़ें
3. नाटक
उद्देश्य : समाज में भेदभाव, हिंसा, सामाजिक बुराइयों, अन्याय, स्वतंत्रता का हनन आदि के दुष्परिणामों को संवेदनशीलता से समाज के समक्ष लाना।
प्रक्रिया :
- इसका आयोजन गांव की चौपाल या शहर के किसी सभागार में किया जा सकता है। इसका कई दिनों तक प्रचार किया जाए जिससे बड़ी तादात में लोग इन्हें देखने आए।
- नाटक गांव के समूह या विभिन्न स्कूल के समूहों द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं। आयोजकों को इसके लिए पूरी तैयारी की जरूरत होगी।
- आयोजकों को यह भी ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक नाटक से क्या सूचना समाज में दी जा सकती है। इसके लिए आयोजकों को प्रत्येक नाटक समूह के संपर्क में रहना जरूरी है।
4. समानता दिवस या मेला
उद्देश्य : सामाजिक समानता विषय पर विविध तरह से बच्चों या युवाओं का ध्यान आकर्षित करना।
प्रक्रिया :
- युवा या बड़े उम्र के लोगों के साथ समानता दिवस या मेले के आयोजन की योजना बनाएं।
- विविधता पूर्ण कार्यक्रम जैसे कि सामाजिक समानता की दृष्टि से मुख्य कानूनी जानकारी क्विज प्रतियोगिता के रूप में देना। सवाल-जवाब मंच, नुक्कड़ नाटक, नौटंकी आदि के द्वारा समाज में मौजूद गैर-बराबरी के मुद्दे को उठाया जाए।
- इस तरह के आयोजन का पूर्व से प्रचार-प्रसार अच्छी तरह किया जाए जिससे आम व्यक्ति इस तरह के आयोजनों का लाभ उठा सके।
5. वाद-विवाद प्रतियोगिता
उद्देश्य : समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व आदि मूल्यों से जुड़े मुद्दों पर वाद-विवाद द्वारा मुद्दे की गहनता का अभ्यास युवा वर्ग को कराना।
प्रक्रिया :
- वाद-विवाद प्रतियोगिता का समय बच्चों की परीक्षा के समय को दृष्टिगत रखकर किया जाना चाहिए। संभव हो तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, मानवाधिकार दिवस, महापुरुषों की जयंती आदि के नजदीक इसका आयोजन किया जाए।
- विषय का चयन बच्चों की उम्र, विषय की समझने की परिपक्वता, माहौल, तत्कालीन परिस्थितियों को देखकर किया जाए।
- प्रतियोगिता एक ही स्कूल में विभिन्न कक्षाओं के मध्य या अंतर स्कूल या अंतर जिला, राज्य में आयोजित की जा सकती है। इसका निश्चित समय, संसाधन, उद्देश्य के अनुसार आयोजन स्वयं करें।
- प्रतियोगिता के निर्णायक दल का चयन, प्रतियोगिता के व्यापक लक्ष्य को मध्य नजर में रखकर किया जाए।
- समाचार पत्रों के माध्यम से वाद-विवाद में मुख्य बिंदुओं को समाज के समक्ष लाना भी आयोजन का हिस्सा बनाया जाए जिससे समाज के नजरिए पर भी प्रभाव डाला जा सकता है।
6. निबंध प्रतियोगिता
उद्देश्य : सामाजिक भेदभाव, सामाजिक कुरीतियां एवं संवैधानिक मूल्यों आदि पर वैचारिक ज्ञान बढ़ाना एवं गहराई से इन विषयों को समझने का अवसर प्रदान करना।
प्रक्रिया :
- निबंध प्रतियोगिता का आयोजन स्कूल के अंदर विभिन्न कक्षाओं के बीच, अंतर स्कूल या विभिन्न उम्र के युवाओं के साथ खुले में किया जाए।
- निबंध का विषय शैक्षणिक हो एवं उनकी उम्र के स्तर, परिपक्वता को नजर में रखकर तय किया जाए।
- समाचार पत्रों में निबंध के मुख्य बिंदुओं को समाज के समक्ष लाएं। संभव हो तो मुख्य बिंदुओं का संकलन पुस्तिका के रूप में भी प्रकाशित किया जाए।
7. पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता
उद्देश्य : सामाजिक गैर-बराबरी, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुता संबंधित किसी भी विषय पर युवावर्ग के लिए पोस्टर प्रतियोगिता के द्वारा विषय की गहराई को समझा कर चित्र के माध्यम से प्रस्तुत करना।
प्रक्रिया :
- यह तरीका निरक्षर युवावर्ग के लिए भी उपयुक्त रहेगा। विषय का चयन तत्कालीन परिस्थितियों, भाग लेने वाले युवाओं की परिपक्वता, उम्र, रूचि के अनुसार किया जाए।
- प्रतियोगिता का विषय, समय, स्थान, भाग लेने वालों की उम्र आदि की सूचना विविध माध्यम (पत्र-पत्रिकाओं, नोटिस बोर्ड) से दी जाए।
- गांव के परिपेक्ष में मौखिक रूप से या लोक माध्यम जैसे कि डुगडुगी, ढोल बजाकर भी दी जा सकती है।
- स्कूल के विद्यार्थियों को उनकी कक्षा में नोटिस भेजकर भी सूचना दी जा सकती।
- एक निश्चित संख्या में अवश्य ही प्रतियोगी भाग ले यह किसी न किसी माध्यम से सुनिश्चित करें जैसे कि पंचायत स्तर पर यदि यह आयोजन किया जा रहा है तो प्रत्येक स्कूल व गांव से पांच-पांच युवाओं के भाग लेने की व्यवस्था की जाए जिससे कम से कम 35-50 लड़के-लड़कियां भाग ले सकें।
- सभी प्रतियोगिताओं द्वारा तैयार पोस्टर की प्रदर्शनी ऐसे स्थान पर लगाई जाए जहां अधिक से अधिक लोग पोस्टर को देखकर जानकारी बढ़ा सकें।
इस तरह से कई तरीकों का इस्तेमाल संवैधानिक मूल्यों के प्रसार के लिए और उनके प्रति सकारात्मक नजरिया बनाने के लिए किया जा सकता है।